किया है कर्मों का क्षय
मुनि चैतन्य कुमार ‘अमन’
साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा की आत्मा थी ज्योतिर्मय
करें कामना पाए वो अब मोक्ष नगर सिद्धालय
जय हो जय हो कनकप्रभा
शासनमाता कनकप्रभा॥
असाधारण साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जी प्यारी
महाश्रमणी संघ महानिदेशिका लगती अति मनहारी
पाया संबोधन गुरुवों से, सर्वोत्तम गरिमामय॥
गुरुवर तुलसी-महाप्रज्ञ का पाया उत्तम साया
युग प्रधान गुरु महाश्रमण से जीवन धन्य बनाया
त्रय आचार्यों की पाई है, शुभ दृष्टि मंगलमय॥
श्रद्धा सेवा और समर्पण सौम्य सरस मृदु वाणी
प्रवचन धारा सुनकर सारे हर्षित होते प्राणी
कला कुशलता कनकप्रभा की, मानो थी अमृतमय॥
गण निष्ठा मर्यादा निष्ठा संयम निष्ठा भारी
जागरूकता अद्भुत अनुपम गण से ही इकतारी
गण-गणपति की सेवा करके, कीया है कर्मों का क्षय॥
लंबे-लंबे कर विहार गुरु महाश्रमण पधराए
तीनों समय कराई सेवा अमृत घूँट पिलाए
मुनि चैतन्य छाँव रहे वो, सदा-सदा ममतामय॥
लय : मांय न मांय तेरी---