शासनमाता ध्यान धरें
मुनि दीप कुमार जी
शासनमाता ध्यान धरें।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा को जन-जन याद करें॥ ध्रुव॥
तेरापंथ राजधानी की थी सुपुत्री शुभकारी।
गुरुवर तुलसी से साध्वी दीक्षा हुई मंगलकारी।
क्रमश: बढ़ती गई संघ में मानों अमृत रस झरें॥1॥
गुरुवर तुलसी की अनुपम अनुकंपा तुमने पाई।
साध्वीप्रमुखा अष्टम बनकर सकल संघ में छाई।
साध्वी समाज को खूब संभाला, प्रगति शिखर वरें॥2॥
तेरे भाषण, लेखन में निपुणता भैक्षव गण में निराली।
विनयनिष्ठ, व्यवहार कुशल थी, सबके मन थी खुशहाली।
तीन-तीन गुरुओं की सेवा में थी महासतीवरे॥3॥
महाश्रमण गुरुवर ने अमाप्य कृपा तुम पर बरसाई।
असाधारण साध्वीप्रमुखा, शासनमाता वरदाई।
गुरुवर द्वारा अमृत महोत्सव तेरा महाश्रमणी वरे॥4॥
साध्वीप्रमुखा पद पर दी पाँच दशक तक सेवा।
स्मृतियों के झरोखे में है मानो कोई मेवा।
शासनमाता के गुण गाकर ‘दीप’ गुण विपूल भरे॥5॥
लय : धर्म की लौ जगाएँ हम