धारा अद्भुत संथारा
नचिकेता मुनि आदित्य कुमार
जीया जागृत बनकर जीवन, मृत्यु को भी स्वीकारा।
धन्य-धन्य है शासनमाता! धारा अद्भुत संथारा॥
परखा तुलसी की नजरों ने, साध्वीप्रमुखा पद पाया,
शिक्षा कला साधना में, साध्वी समाज को विकसाया।
श्रद्धा-सेवा और समर्पण, श्रम की बहती शुभ धारा॥
साहित्यिक यात्रा की गाथा, रोमांचक मंगलकारी,
कविता-लेख-कथा कौशल की, जन-जन जाता बलिहारी।
मेरा जीवन-मेरा दर्शन, निर्मित संपादन द्वारा॥
महाश्रमण युग में पचास संवत्सर पद के पूर्ण किए,
अमृत महोत्सव गुरु सन्निधि में, ज्योतित गण में हर्ष दिए।
मर्यादोत्सव बीदासर पर, किया कार्य अपना सारा॥
विषम व्याधि ने डाला डेरा, समता फिर भी क्षण क्षण में,
गुरुवर के दर्शन हो जाएँ, यही भावना थी मन में।
लंबे-लंबे कर विहार गुरुवर आए जय जयकारा॥
अंत समय में गुरुवर मुख से, स्वीकारा दुर्लभ अनशन।
चंद समय में छोड़ी काया, चकित हुआ जन-जन का मन।
अमर बना कर्तृत्व तुम्हारा, प्रेरित है शासन सारा॥
लय : कलयुग बैठा मार कुंडली