मोक्ष प्राप्ति के लिए सम्यक्त्व जरूरी है : आचार्यश्री महाश्रमण
अध्यात्म साधना केंद्र, 19 मार्च, 2022
तेरापंथ धर्मसंघ के सारथी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री जी की स्मृति सभा के दूसरे दिन फरमाया कि जैन शासन में सम्यक्त्व और चारित्रये दोनों बहुत महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। मोक्ष प्राप्ति के लिए सम्यक्त्व जरूरी है और चारित्राराधना भी आवश्यक है। सम्यक्त्व है, पर चारित्र के बिना मोक्ष प्राप्ति की दिशा में संपूर्णता नहीं आती है। अनंत आत्माएँ संसार में हैं। मोक्ष में भी हैं। ऐसा लगता है, प्रत्येक आत्मा भले वह आज सिद्ध है या संसारी है, कभी न कभी तो मिथ्यात्वी अवश्य ही थी। अनंत-अनंत काल तक हर आत्मा मिथ्यात्ववस्था में रही है। सम्यक्त्व प्राप्ति होती है, मानो एक आध्यात्मिक प्रकाश प्राप्त होता है। वह जीव की अनंत-अनंत काल की यात्रा में बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है।
सम्यक्त्व से बड़ा कोई रत्न नहीं दुनिया में। दुनिया में इससे बड़ा न तो कोई मित्र है, न बंधु है, न इसके समान कोई लाभ है। चारित्र के बिना सम्यक्त्व तो हो सकता है, पर सम्यक्त्व के बिना चारित्र नहीं हो सकता, यह महत्त्वपूर्ण बात है। चारित्र को सम्यक्त्व का आधार चाहिए, पर सम्यक्त्व को चारित्र का आधार नहीं चाहिए। सम्यक्त्व अकेला रह सकता है, पर चारित्र नहीं। सम्यक्त्व हमारा कैसे निर्मल रहे, इसके लिए तीन बातें अच्छी प्रतीत हो रही हैंयथार्थ के प्रति श्रद्धा, मैं उसी को सत्य मानता हूँ जो जिनों के द्वारा प्रज्ञप्त है। तत्त्वबोध का प्रयास हो। तत्त्व को समझें जीव क्या, अजीव क्या आदि नौ तत्त्वों को समझें। मेरा ज्ञान सही हो। कषाय मंदताराग-द्वेष व कषाय मेरे प्रतनु बने। ये तीन बातें महत्त्वपूर्ण हैं।
सम्यक्त्व है, फिर साथ में चारित्र है तो फिर कहना ही क्या? सोने में सुहागा है। दोनों है, तो मोक्ष का मार्ग परिपूर्ण हो गया। शासनमाता का स्मृति सभा का क्रम चल रहा है। साध्वीप्रमुखाश्री जी ने चारित्र भी ग्रहण किया। सम्यक्त्व और चारित्र की आराधना अच्छी होती है। दोष लग सकता है, पर शुद्धिकरण का प्रयास चलता रहे। आलोयणा व प्रतिक्रमण शुद्धि का उपाय है। साध्वीप्रमुखाश्री जी को मैं लगातार आलोयणा करवाता रहा। आजीवन संयम जीवन की भी सूक्ष्मता से आलोयणा कराई थी। पाँचों महाव्रतों व छठे रात्रि भोजन विरमण का भी दोबारा प्रत्याख्यन करवाए। वो बार-बार कृतज्ञता ज्ञापित करती रहती थी। उनके गुरु दर्शन की चाह थी। दूर बैठे भी उनका मनोभाव था कि मेरे लिए आचार्यश्री को इतना श्रम करना पड़ेगा। उनकी चिकित्सा का प्रयास भी बहुत हुआ। उनकी भावना थी कि अब 80 वर्ष की हो गई हूँ और दोष क्यों लगाऊँ।
उन्होंने अपने जीवन में साधना की और कितनों की साधना में सहयोग दिया है। सैकड़ों-सैकड़ों साध्वियों का दीक्षा के समय का लोच किया था। कितनी सेवा की और आचार्यों को व्यवस्था में सहयोग दिया। संयम में रहते हुए सेवा-सहयोग दिया जाता है, तो जीवन सार्थक बन सकता है। उन्होंने लंबे काल तक हमारे धर्मसंघ को सेवाएँ दी हैं। उनकी सेवाओं से धर्मसंघ को भी आगे बढ़ने का मौका मिला है। हम उनके गुणों का स्मरण करके विकास का जितना प्रयास कर सकें, करते रहें। शासनमाता की स्मृति सभा में जैविभा विश्वविद्यालय की कुलाधिपति सावित्री जिंदल ने उनके प्रति अपने भाव उद्गारित किए। पूज्यप्रवर ने उन्हें आशीर्वचन फरमाया।
मुनि नम्रकुमार जी, साध्वी विशालयशाजी, साध्वी काम्यप्रभाजी, साध्वी आस्थाप्रभाजी, साध्वी सिद्धार्थप्रभाजी, साध्वी अनन्यप्रभाजी, साध्वी कुष्यप्रभाजी, साध्वी सुनंदाश्रीजी, साध्वी सुदीप्रभाजी, साध्वी तेजस्वीयशाजी, साध्वी ओजसप्रभाजी, साध्वी चिंतनप्रभाजी, साध्वी कांतयशाजी, साध्वी सिद्धप्रभाजी, साध्वी चित्तप्रभाजी, समणी ज्योतिप्रज्ञा जी, समणी अर्हतप्रज्ञाजी, समणी मृदुप्रज्ञा जी, समणी क्षांतिप्रज्ञा जी, समणी स्वर्णप्रज्ञाजी, समणी सौम्यप्रज्ञा जी, मुमुक्षु अंकिता, मुमुक्षु सलौनी, मुमुक्षु मानवी, बोधार्थी ॠजुल, बोधार्थी खुशबू ने शासनमाता की स्मृति में अपने अनुभवों व भावों की अभिव्यक्ति दी। शासनमाता के प्रति अपनी भावांजलि प्रदान करते हुए पालम सभा से ईश्वर जैन, संजय सुराणा, अध्यक्ष शास्त्रीनगर सभा, संजय चोरड़िया, दक्षिणी दिल्ली अध्यक्ष, मूलचंद नाहर, सतीष कुमार जैन, रमेश बोहरा, शशिकला नाहर, ॠतु धोका, अभिलाषा बांठिया, सरला भूतोड़िया ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।