नयनों के दिव्य उजारे
नयनों के दिव्य उजारे
वो नयन हो गए ओझल, इन नयनों से।
जो शत सह नयनों के दिव्य उजारे थे।।
वो हाथ छूट गए उन हजारों हाथों से।
जिनमें शक्तिपात कर कर्तृत्व के रग निखारे थे।।
वो पदपंकज अदृश्य हो गए धरती से।
जो लाखों कदमों की गति के सबल सहारे थे।।
वो कर्णपटल कहाँ खो गए नहीं जानते।
जो हर बेताब दिल के तारणहारे थे।।
वो ममतामयी आँचल कहाँ अदृश्य हो गया।
जिसने चरणागत के जीवन काँटे बुहारे थे।।
वो हृदय-धड़कने कैसे थम गई बिना कहे।
जो भक्त दिलों के धड़कनों को प्यारे थे।।
वो मधुर वर्णमाला के आखर हुए कहाँ तिरोहित।
जिनकी झन्कार के स्पंदन पीड़ाहारे थे।।
वो चंदा की रोशनी गुम हो गई कहाँ।
जिससे रोशन अनगिन जन भाग्य सितारे थे।।
कहाँ है वो माँ जिनसे मिलकर हर दिल कहता।
वो शासनमाता महाश्रमणीजी हमारे थे।।