इत उत ढूँढ़ रहा जन मानस
इत उत ढूँढ़ रहा जन मानस
पलक झपकते ओझल हो गई मन मोहक मुरतियां।
इत उत ढूंढ़ रहा जन मानस नहीं आती नजरियां।।
शबरी की चाह थी दर्शन की राम स्वयं पधराये हैं।
विधिवत वंदन कर तुमको भी मंगल शरण सुनाये हैं।
गुरुवर चरणों में धरदिन्ही ज्यूं की त्यूं चदरियाँ---।।
इंगियागार दृष्टि आराधन, गुरुत्रय की वर सन्निधि में।
कार्य कुशलता ममता क्षमता समता जीवित परिधि में।
भावों की निर्मल गंगा से बहती रही लहरियां---।।
हर दिल की धड़कन को समझा पीड़ा हर लेती पल में।
गण गणपति हो निष्ठा गहरी संस्कार भरे नंदनवन में।
पावन कर कमलों से खिल गई कइयों की मरुवरियां---।।
अनुपमेय व्यक्तित्व तुम्हारा, क्या गौरव गरिमा गायें।
श्रमणी गण की सती शेखरे! पद-चिÐों पर बढ़ जायें।
सूनी हो गई मन की गलियाँ, नयणां तरसे सुरतियां---।।
भैक्षव शासन कल्पतरु की छाँह तले आनंद पाया।
ऊपर जाऊँ तुलसी छाया, नीचे महाश्रमण साया।
शासनमाता प्रस्थित हो गई शिवपुर की नगरिया---।।
लय: नगरी-नगरी द्वारे