अनगिन दीप जलाएँ
अनगिन दीप जलाएँ
शासनमाता साध्वीप्रमुखा गौरवगाथा गाएँ।
मिली प्रेरणाएँ जो तुमसे जीवन-पंथ बनाएँ।।
ऋणी रहेगा संघ हमेशा सेवाएँ तेरी अनमोल,
हो जाते आश्वस्त हृदय सुन तेरे मधुरिम मंजुल बोल।
कार्यकला थी अद्भुत तेरी कैसे उसे भुलाएँ।।1।।
जागरूकता का सुंदरतम उदाहरण तेरा जीवन,
संस्कारों का सिंचन दे महकाएँ कितने मन-उपवन।
सहज-सुघड़ जीवनशैली जीने की कला सिखाएँ।।2।।
चिरसंचित पुण्यों का फल गुरुओं की कृपा सवाई,
सतत अमन्द अनुत्तर पौरुष, वर्धमान पुण्याई।
पुण्य और पौरुष की युति को आओ शीश झुकाएँ।।3।।
तीव्र वेदना में भी देखी समता सहिष्णुता हरदम,
तेरा जीवन भक्ति शक्ति आत्मानुरक्ति का शुभ संगम।
प्रेरक दीपशिखा बन तुमने अनगिन दीप जलाएँ।।4।।
अहोभाग्य गुरुवर की सन्निधि में अंतिम उच्छवास लिया,
गुरुवर के श्रीमुख से आराधना गीतों का श्रवण किया।
लाखों में विरला मानव ही ऐसा अवसर पाएँ।।5।।
लय: जनम-जनम का साथ