वत्सलता रस झरनो बहायो
वत्सलता रस झरनो बहायो
मातृहृदया प्रवर शासन माँ सुखकर स्नेह लुटायो।
वत्सलता रस झरनो बहायो।
गौरव गावण नै मनड़ों उमड़ायो।।
छोटी आयु में संयम धार्यो योग स्थिरता स्यूं खूब संवार्यो।
श्रम रो सुमन खिल्यो श्रुत रो दीप जल्यो तेज सवायो।
गुरु रै दिल में सुस्थान बणायो।।
थांरी अद्भुत क्षमता निहारी तुलसी प्रभुवर करी रिझवारी।
आ है केसर क्यारी सौरभ प्यारी-प्यारी पद संभलायो।
साध्वी समुदाय नै अमृत पिलायो।।
आगम जोड़ां रो कार्य विलक्षण लेखन संपादन देख चकित जन।
काव्य कुशलता न्यारी प्रवचन पटुता भारी चित्त लुभायो।
थांरो सिरजन अधिक सुहायो।।
जीवन भर थे रह्या गुरुकुलवासी दक्षिण यात्रा बणी इतिहासी।
अमृत मोच्छव सुखद शासनमाता विरुद गुरु बगसायो।
शासन उपवन में आनंद छायो।।
गुरुवर लंबी यात्रा कराई अंतिम क्षण तक प्रगटी पुण्याई।
आलोचन अनशन आराधक पदवरण, साझ दिरायो।
मुक्ति मार्ग प्रशस्त करायो, ओ उपकार न जाय भूलायो।।
रह-रह स्मृतियाँ ‘मधुस्मिता’ आवै ममता सागर में कुठा नहलावै।
निर्मल संयम जीवन जीणो है क्षण-क्षण पाठ पढ़ायो।
उन्नति पथ पर बढ़णो सिखायो।।
लय: तुमसे लागी लगन