शासनमाता पर है नाज
शासनमाता पर है नाज
शासनमाता पर है नाज।
असाधारण प्रमुखाश्री का गौरव गाएँ आज।।
कोलकाता में जन्म तुम्हारा कला प्रवर अभिधान तुम्हारा।
चंदेरी का दिव्य सितारा बैद वंश का तुम उजियारा।
सूरज तात मात छोटी बाई के मन का तारा।।
वैराग्य भाव था बड़ा विलक्षण, बाबोसा ने किया परीक्षण।
चार वर्ष संस्था में शिक्षण बनी मुमुक्षु लिया प्रशिक्षण।
द्विशताब्दी का सुंदर अवसर, दीक्षा का ओगाज।।
संस्कृत भाषा थी उपकारी, प्राकृत भाषा भी आभारी।
सृजन विधाएँ विविध तुम्हारी, लेखन कितना शिव सुखकारी।
ज्ञानामृत का पान करें हम जाने जीवन का राज।।
निर्मल था आचार तुम्हारा, पावन गंगा जल की धास।
कुशल सफल नेतृत्व तुम्हारा, साध्वी गण का सबल सहास।
तेरी सन्निधि मंगलकारी, फलते वांछित काज।।
जिन हाथों ने हमें सजाया, जिन चरणों ने हमें बढ़ाया।
समय-समय पर बोध दिराया, अनुशासन का पाठ पठाया।
अमर रहेगा नाम तुम्हारा, अंतर की आवाज।।
यात्रा कर इतिहास रचाया, भारत भू पर भ्रमण कराया।
गाँव-गाँव घर-घर महाकाया, जन-जीवन सरसब्ज बनाया।
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण, यश गूंजे निर्व्याब।।
गुरु कृपा के पल अनमोले, कौन तराजू से हम तोले।
अमृतम् के जब पन्ने खोले, भक्त हृदय का कण-कण बोले।
जड़ चेतन से सजा हुआ है, सात सूरों का ताज।।
गण गणपति हित सहज समर्पण गुरु चरणों में तन-मन अर्पण।
अप्रमाद का उज्ज्वल दर्पण, प्रशस्त साधना में रत क्षण-क्षण।
कृपा कराई सदा सवाई महाश्रमण गुरुराज।
महाप्रयाण हुआ दिल्ली में सन्निधि पा गुरुराज।।