जीवन सरस बनाऊँ
जीवन सरस बनाऊँ
दिव्य अलौकिक जीवन से मैं नई प्रेरणा पाऊँ।
देख तुम्हारी समता क्षमता जीवन सरस बनाऊँ।।
जब-जब अवलोकन करती हूँ, ज्योतिर्मय तब जीवन।
वरदहस्त को पा, खिल उठता मेरा मन उपवन।
कैसी सुंदर जीवनशैली, व्यक्त नहीं कर पाऊँ।।
सहज समर्पण और सादगी, बना जीवन का सूत्र तुम्हारा।
ऋजुता-मृदुता और नम्रता, का सिखलाया नारा प्यारा।
तेरे गुण गौरव की गाथा, हर पल स्मृति में लाऊँ।।
गुरु दृष्टि की अनुगामी ही, रही अहुनिश दृष्टि तुम्हारी।
गुरु चरणों में कर दिया, सर्वस्व समर्पित इच्छा पूरी।
सागर सम उनकी गहराई, निज आदर्श बनाऊँ।।
कैसे माप सकूँ शब्दों में, माँ व्यक्तित्व तुम्हारा।
संघ संपदा के कण-कण में, है कर्तृत्व तुम्हारा।
अनुपमय वात्सल्य तुम्हारा, कैसे मैं बतलाऊँ।।