शांति और अहिंसा से अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण
अणुव्रत भवन, 26 मार्च, 2022
अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः ओसवाल भवन से पुनः अणुव्रत भवन पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आदमी के भीतर अनेक प्रकार की वृत्तियाँ होती हैं। मुख्यतः आवेश की भी वृत्ति, लोभ और भय की भी वृत्ति। आदमी डर जाता है। डरना भी हमारी एक संज्ञा है। वृत्ति है।
जैन वाङ्मय में आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञाµयों संज्ञा के चार प्रकार आते हैं। दस प्रकार भी बताए गए हैं। मोहनीय कर्म का एक अंश है, यह भय। नौ कषाय में भय भी एक है। आदमी खुद भी डरता है और दूसरों को भी डराने की चेष्टा करता है। अभय के भाव में दो बातें सन्निहित हो जाती हैंµडरना भी नहीं और डराना भी नहीं।
डरना एक दुर्बलता है, तो डराना एक पाप है। दूसरों को गलत रूप में डराने की चेष्टा करेंगे तो खुद को भी डरना पड़ सकता है। हिंसा के बड़े परिवार में यह डराना भी एक अवयव सदस्य है। एक प्रसंग से समझाया कि राजा रक्षक होता है, पर कभी पशुओं के लिए भक्षक भी बन जाता है। राजा के तीन कर्तव्य हैंµकामगारों की रक्षा करना, दुर्जनों पर अनुशासन एवं आश्रित जो प्रज्ञा है उसका भरण-पोषण करना। ये राजधर्म की बाते हैं।
वर्तमान में लोकतंत्र प्रणाली है, पर है वो शासन की प्रणाली ही। दो प्रविधियाँ हैं, मर्म एक ही है। लोकतांत्रिक प्रणाली में भी अनुशासन, कर्तव्यनिष्ठा, नियम निष्ठा ये आवश्यक हैं। देश स्वतंत्र है, पर स्वतंत्रता का मतलब स्वच्छंद नहीं है। जनता को भी अभय मिले। आत्मानुशासन अच्छा चलता है तो अभय का भाव रह सकता है। व्यवस्था भी अच्छी रह सकती है।
परानुशासन भी आवश्यक होता है। निर्दोष की सुरक्षा और दोषी को उचित दंड। मनुष्यों की रक्षा होती है, पर पशु-पक्षियों की भी असुरक्षा न हो जाए। उनको भी जीने का अधिकार है। शिकार करने वाले को आनंद आ सकता है, पर जिसका शिकार किया गया है, उसकी क्या हालत होगी। दूसरों को डराने वाला खुद भी डर सकता है।
क्षमायाचना से अभयदान मिल सकता है। साधु तो अहिंसा का पुजारी होता है। साधु का धर्म है वह क्षमा मूर्ति बना रहे। हिंसा करने वाला साधुता से दूर चला जाता है। अभयदान चाहने वाला अभयदान देना सीखे। जीवन अनित्य है, फिर हिंसा में क्यों आसक्त बने। हम भी अभयदानदाता बनें। किसी प्राणी की अकारण हिंसा न करें। साधु तो सभी प्राणियों का पीहर है, उनसे किसी को खतरा नहीं होता है। साधु के तो छ काय के जीव को मारने का जीवन भर का त्याग है।
साधु तो हमारे समता और आनंद में रहें। गृहस्थ को तो आवश्यक हिंसा करनी पड़ती है। अनेक समस्याओं का समाधान शांति और अहिंसा से हो सकता है। आवश्यकता हिंसा से गृहस्थ बचे। युद्ध को मौका ही न मिले। शांति-समझौता वार्ता करें। प्रयास हो कि सब अहिंसा में रहें। सबको शांति से रहने दें। तुम्हें जीवन प्रिय है तो औरों को भी जीवन प्रिय है।
परिवारों में, समाजों में, राष्ट्रों एवं विश्व में शांति रहे। एक तो आयस शस्त्र और एक होते हैंµमार्दव शस्त्र। कई बार आयस शस्त्र काम नहीं करता, मार्दव शस्त्र काम कर सकता है। कहीं-कहीं हिंसा से भी समाधान मिलना हो सकता है। परंतु प्रयास यही हो कि हिंसा को काम न लेना पड़े। अहिंसा, शांति व प्रेम से स्थिति सुलझ जाए ऐसा प्रयास हो। अहिंसा, मृदुता, प्रेम, करुणा में शांति में रहने वाले हैं। अशांति से हिंसा को पनपने का मौका मिल सकता है।
अणुव्रत आंदोलन भी एक अहिंसा से जुड़ा हुआ आंदोलन है। गृहस्थ निरापराध की तो हिंसा न करें। सापराध की हिंसा न करना तो और ऊँची बात है। अणुव्रत भवन से जितनी संभव हो बात बाहर पहुँचे कि शांति-अहिंसा का माहौल रहे। अणुव्रत से अहिंसा, संयम और नैतिकता का प्रसार चिंतन गोष्ठियों के द्वारा होता रहे। प्रवचन व साहित्य भी योगभूत बन सकते हैं। भीतर की चेतना में अहिंसा आए।
रूस और युक्रेन का प्रसंग है। उनमें भी हिंसा दूर हो। उनके भी शांति के लिए अहिंसा को काम में लेना चाहिए। मारने या अशांति से क्या होगा? हम मंगलकामना करते हैं कि अहिंसा व शांति का संदेश रूस और युक्रेन की जनता में भी आए। एक कोरोना ने पूरे विश्व को हिला दिया और अशांति न आए तो बढ़िया। अभयदान, अहिंसा, शांति ये हमारे जीवन में पुष्ट रहें, यह काम्य हैं। रूस और युक्रेन की जनता में शांति-अहिंसा रहे, इसके लिए ध्यान का प्रयोग करवाया।
पूज्यप्रवर ने मुमुक्षु तारा लुणिया को साध्वी दीक्षा छापर में 9 सितंबर को देने का भाव है, यह फरमाया। साध्वी कुंदनरेखाजी के सिंघाड़े ने पूज्यप्रवर की अभिवंदना में गीत की प्रस्तुति दी।
शांति कुमार जैन, महिला मंडल, बारह व्रत की प्रस्तुति, कन्या मंडल, सतीष जैन ने अपने भावों की प्रस्तुति श्रीचरणों में दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।