ज्ञानपूर्वक आचरण सम्यक् हो सकता है: आचार्यश्री महाश्रमण
अणुव्रत भवन, 24 मार्च, 2022
श्रमण परंपरा के शिखर पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अणुव्रत भवन में मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने एक पथदर्शन दिया है कि पहले ज्ञान फिर दया-आचरण। दो चीजें हैंµएक है ज्ञान और दूसरी है आचरण।
शास्त्रकार ने कहा है कि आचरण के बारे में ज्ञान होना चाहिए। ज्ञानपूर्वक आचरण सम्यक् हो सकता है। ज्ञान के बिना अहिंसा का आचरण भी नहीं हो सकता। किसी भी क्षेत्र में जो कुछ करना है, उसका पहले ज्ञान होना चाहिए। संभवतः किसी भी विषय को ले लें, पहले उसका ज्ञान होगा तभी उसकी क्रियान्विति हो सकेगी।
मोक्ष के संदर्भ में भी ज्ञान और क्रिया दोनों का महत्त्व है। केवल जान लेना प्रयाप्त नहीं, उसके लिए क्रिया भी करनी पड़ेगी। ज्ञान और क्रिया के योग से कोई निष्पत्ति आ सकती है। यह एक प्रसंग से समझाया। कोश ज्ञान भी अप्रयाप्त है, ज्ञान के बिना क्रिया करे तो वो भी अप्रयाप्त हो सकती है। विद्या संस्थानों में अच्छा ज्ञान दिया जाता है, पर साथ में अच्छे संस्कार भी आएँ तो विद्यार्थियों का जीवन, उनकी आत्मा अच्छी बन सकती है।
अहिंसा एक ऐसा विषय है, उसका ज्ञान भी हो और आचरण भी हो। तेरापंथ को व्यापक क्षेत्र प्रतिष्ठित करने में अणुव्रत का भी बड़ा योगदान है। गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत को आगे बढ़ाया। विभिन्न लोगों से उनका संपर्क हुआ। चाहे वो आम हो या खास। कितने लोगों के हृदय में अणुव्रत को स्थापित किया। अहिंसा अणुव्रत की आत्मा है। अणुव्रत न्यास व अणुव्रत संस्थान के द्वारा नैतिकता-संयम, अणुव्रत के विकास में योगदान दिया जाता रहे, यह काम्य है।
अध्यात्म साधना केंद्र भी अच्छा परिसर है। अनेक गतिविधियाँ वहाँ चल रही हैं और चल भी सकती हैं। तेरापंथ समाज का अच्छा केंद्र है। चिकित्सा और साधना का अच्छा स्थान है। अणुव्रत भवन दिल्ली का केंद्रीय स्थान है। यह दिल्ली का मध्यवर्ती स्थान है। तेरापंथ समाज से जुड़े और भी स्थान हैं। सभी उपयोगी हैं। इन स्थानों में आध्यात्मिक, धार्मिक गतिविधियाँ रहें। कार्यकर्ता भी अपना कितना समय लगाते होंगे। चारित्रात्माओं का भी अच्छा पथ-दर्शन मिलता रहता है। जन संपर्क की दृष्टि से अणुव्रत भवन उपयोगी है।
दिल्ली का सौभाग्य है कि आचार्यों की कृपा दिल्ली पर रही है। दिल्ली में आने से पूरे भारत का संपर्क आसानी से हो जाता है। कुल मिलाकर दिल्ली एक अच्छा कार्य करने का स्थान भी है, और श्रावकों की अनुकूलता भी दिल्ली में है।
जैविभा द्वारा प्रो0 मुनि महेंद्र कुमार जी की कृतिµकरें कतिपय निमज्जन-जैन तत्त्व सागर में पूज्यप्रवर के श्रीचरणों में लोकार्पित की गई। पूज्यप्रवर ने फरमाया कि यह किताब वैसे तत्त्वज्ञान की दृष्टि से संभवतः कुछ शोधपूर्णता से युक्त किताब है। मुनि महेंद्र कुमार जी स्वामी का ज्ञान भी उच्च स्तरीय प्रतीत हो रहा है। हो सकता है कि कोई-कोई बात इसमें ऐसी भी हो, जो अभी तक संघीय मान्यता को उसने न प्राप्त किया हो। मुनिश्री ने चिंतन के लिए अपना विचार संघ के सामने प्रस्तुत किया हो। मुनिश्री बहुश्रुत परिषद के संयोजक भी हैं।
बहुत ज्ञान वाला व्यक्ति बहुश्रुत होता है। यह पुस्तक हमारे साधु-साध्वियों के लिए व श्रावक-श्राविकाओं, समणियों जिनको तत्त्वज्ञान में रुचि हो, उनसे ज्ञान भी प्राप्त हो सकेगा। कुछ चिंतन का विषय भी प्राप्त हो सकेगा। ऐसी संभावना की जा सकती है। जैविभा तो ज्ञान के प्रसार में अपना योगदान देती है। समय-समय पर ग्रंथ सामने आते रहते हैं। वर्तमान में तो तेरापंथ में सारे ग्रंथों को प्रसारित करने का दायित्व जैविभा निभाती है।
जैविभा के अध्यक्ष मनोज लुणिया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। यहाँ अणुव्रत भवन में जैविभा का स्टॉल निरंतर चालू रहेगा, आभार जताया।
साध्वीवर्याजी ने कहा कि संसारी आत्मा पुरुषार्थ से ही आत्मा से परमात्मा बन सकती है। सद्गुरु हमें मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, हम उनके मार्गदर्शन के अनुसार ही आगे बढ़ें। जो व्यक्ति अपने कर्मों का शोधन करना चाहता है, उसे स्वाध्याय करना चाहिए। स्वाध्याय के प्रकारों के बारे में समझाया।
पूज्यप्रवर के स्वागत में अणुव्रत भवन के0सी0 जैन, सुभाष जैन, एवं पुलकित खटेड़ ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।