पुण्यात्मा-शासनमाता

पुण्यात्मा-शासनमाता

पुण्यात्मा-शासनमाता

साध्वी मुक्तिश्री

तेरापंथ की तरुण-तरुणिमा, साध्वी समाज की बनी अरुणिमा।
सप्त-प्रमुखाओं के असीम गुणों से, निर्मित हुई तव एक प्रतिमा।।

चैतन्य-रश्मि में जब पढ़ती हूँ आपका जीवन, भीतर में होता अजीव प्रकंपन।
सोचता है मन, कैसे हुआ धरती पर, दिव्य-शक्ति का अवतरण।।

हे! शासनमाता, तेरे उपकारों की गाथा मैं कैसे गाऊँ?
तेरी महिमा गाने को मैं शब्द कहाँ से लाऊँ।।

प्रशस्त करना मेरी राह, बन पाऊँ मैं तव परछाई।
सम-शम-श्रम की त्रिवेणी से, कर पाऊँ मैं खरी कमाई।।

सतिशेखरे! की जागरूकता का हो मुझमें वास।
उच्च-कोटि की विनम्रता का हो तनिक आभास।।

असाधारण साध्वीप्रमुखा की, सहिष्णुता का जगे मन में विश्वास।
ममतामयी माँ के समर्पण-भाव का हमें हो महज अहसास।।

हे! शासनमाता, भर देना मुझमें ऐसी शक्ति,
कर पाऊँ हर-पल तव निर्मल भक्ति।
आ जाए तुझ सी अनुरक्ति,
मिल जाए कुछ भव में मुक्ति।
अंत में पुण्यात्मा को नमन-नमन-नमन।।