माँ तेरा वास
माँ तेरा वास
साध्वी स्मितप्रभा
फूलों की मृदु सौरभ जैसा, मुझमें हो माँ तेरा वास।
मन मंदिर में तेरी मूरत, शीघ्र हरो अब मेरी प्यास।।
रवि की स्वर्णिम आभा सम तुम, भरो शक्तियाँ मेरे भीतर।
हो विकास ऐसा ऊर्जा का, आगे बढ़ती रहूँ निरंतर।
मुरझाई यह कोमल कलिका, भर दो जीने का उल्लास।।
भरती थी संस्कार सलौने, जीवन बनता गंगा नीर।
ऋजुता-मृदुता, वत्सलता, उज्ज्वलता की थी तुम तस्वीर।
उपशम की मैं करूँ साधना, अंतर में कर दो प्रकाश।।
तेरी पावन सुरभि से, सुरभित हो मेरा व्यवहार।
स्मृतियों से आप्लावित कण-कण, महक उठा सारा संसार।
प्रगति शिखर पर बढ़ती जाऊँ, ऐसा मुझको दो आकाश।।