अर्हम्
साध्वी सूरज कुमारी
हुआ और होसी घणा,
साध्वी प्रमुखा पूज।
पिण शासनमाता जिस्या,
हुवे न कोई दूज।।
खूब बढ़ायो संघ रो,
मान और सम्मान।
साध-सत्यां रे हृदय में,
जम्यों है थांरो स्थान।।
‘सूरज कुमारी’ निज जपे,
माताजी रो नाम।
गण-गणपति रे जोग स्यूं,
पाऊँ मुगती धाम।।