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जाऊँ मैं बलिहारी
जाऊँ मैं बलिहारी
साध्वी समप्रभा
जाऊँ मैं बलिहारी।
शासनमाता ने समभावों से, जीवन नैया तारी।।
छोटां सूरज की लाल लाड़ली, कला बनी विख्यात।
श्रेष्ठ साध्वीप्रमुखा बनकर, खूब गढ़ी थी ख्यात।
कनकप्रभा कनकवत निर्मल, लगती मन को प्यारी।।
सहज, सरल और सौम्य स्वभावी, ऋजुता, मृदुता भारी।
हँसता-खिलता चेहरा तेरा, मूरत थी मनहारी।
घोर वेदना तन में तो भी, अद्भुत समता धारी।।
दुनिया में थी विशिष्ट विभूति, कनकप्रभा प्रख्यात।
साहित्य संपादन में कुशल, जो तेरापंथ की ख्यात।
आठ-आठ साध्वीप्रमुखाओं में सबसे थी न्यारी।।
तीन-तीन आचार्यों की, मंजूषा को तुमने पाया।
तुलसी गुरुवर की कृति पर, हर पल रहती सुख साया।
महाश्रमण उपवन की हँसती खिलती फुलवारी।।