कमल सी कोमलता
कमल सी कोमलता
समणी विनीतप्रज्ञा
था निर्झर नीर सा उजला, उजला बाँटता जीवन।
सुशोभित सज्जित था तुमसे, सुपावन भिक्षु का शासन।
गुणाकर महाश्रमणी पाकर खिला था भाग हम सबका।
कला को कलाकार गुरुवर श्री तुलसी दृष्टि ने परखा।
बरसता था सदा सावन, सदा आनंद तव चरणन।।
कमल सी कोमलता मृदुता, और चट्टान सी दृढ़ता।
जो भी आता शरण तेरी लुटाती स्नेह वत्सलता।
थी संख्यातीत गुणराशि करूँ कैसे इसे वरणन।।
लय: तुम अगर साथ देने का