शासनमाता तेरी वो छाया
शासनमाता तेरी वो छाया
साध्वी कुसुमप्रभा
शासनमाता तेरी वो छाया।
कैसे उसको जाएँ भुलाया?
विनम्रता, समर्पण हमें सिखाया,
अंगुली पकड़कर चलना सिखाया।
संघनिष्ठा, गुरुनिष्ठा क्या है?
इसका विराट रूप दिखलाया।।
कामधेनू तुम इस शासन की,
मनवांछित वरदान थी देती।
निरख-परख कर सबकी क्षमता,
सबको विकास पंथ बतलाया।।
आँखों में है तेरी मूरत,
सोते-जागते बस तेरी सूरत।
तुम थी घट-घट की ज्ञाता,
फिर क्यों हमको यूँ बिसराया।।
जो भी माँगा वो तत्काल पाया,
कल्पवृक्ष सा रूप लुभाया।
पर माँ! मन में है प्रश्न भारी,
क्यों दर्शन में अवरोध आया।।