भूल पाएगा नहीं उसको जमाना
भूल पाएगा नहीं उसको जमाना
मुनि ध्रुवकुमार
चित्र तेरा है बसा मेरे हृदय में
जिंदगी का सफर था कितना सुहाना।
झपकते ही पलक बुझ गई दिव्य जोती
क्या हुुआ कैसे हुआ कुछ भी न जाना।।
सीन तुमने बहुत से हमको दिखाए
कृपा को कर याद फूला ना समाऊं।
नींव में मुझको मिला है स्नेह तेरा
अब विरह की पीर मैं किसको सुनाऊं।
मोह-वश जो भी कभी पीछे रहा हो
तुम्हे आता था उसे फिर से बढ़ाना।।
है नहीं अनुभव मुझे दादा-गुरु का
पर सुनी है बहुत सी गाथाएं उनकी।
झलकती हैं झलकियां तुम में ओ माते!
मैं सुनाऊं भावना अपने सुमन की।
दिए तुमने सूत्र नित आगे बढ़न के
(अब) हो सके तो स्वप्न में आकर बताना।।
चमकता था तेज कलियों के वलय में
प्राप्त था शिक्षण महाश्रमणीवरं का।
दीखता था सजगता का रंग जिनमें
प्राप्त संरक्षण महाश्रमणीवरं का।
आज प्रायः सजल है सबकी निगाहें
गण-चमन का दर्द तुमने ना पिछाना।।
अहो! अहो! मन कृतज्ञता से यूं भरा है
विलक्षण थी, विचक्षण थी कार्यशैली।
गुरुत्रय को जो मिला सहयोग तेरा
शांति की सुषमा सदा गण में है फैली।
दिया तुमने खुले-हाथों से सभी को
भूल पाएगा नहीं उसको जमाना।।