हम जीवन में समता की साधना रखने का प्रयास करें : आचार्यश्री महाश्रमण
सादुलपुर, 17 अप्रैल, 2022
नंदनवन तेरापंथ के गणमाली आचार्यश्री महाश्रमण जी ने दैनिक प्रवचन में मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में प्रवृत्ति के तीन साधन हैंµशरीर, वाणी और मन। शरीर के द्वारा हम घूमना-फिरना, खाना और भी कई कार्य करते हैं। वाणी के द्वारा बोलते हैं तथा मन के द्वारा स्मृति, चिंतन और कल्याण करते हैं। इन तीनों प्रवृत्ति का उपयोग हमारे द्वारा होता है।
इन साधनों के आधार पर हमारा जीवन चलता है। शरीर से असद् प्रवृत्ति करने से हम बचने का प्रयास करें। हमारा साथ किसी की आध्यात्मिक सेवा करने में प्रयुक्त हो। हाथों से वंदना करें, चलते हुए अहिंसा का ध्यान दें। वाणी एक महत्त्वपूर्ण शक्ति है। मनुष्य की वाणी में कितने शब्द हैं। कितने शब्दों का आदमी वाणी से प्रयोग करता है। अन्य प्राणी उतना नहीं कर सकते। आदमी की भाषा विकसित है। हम भाषा शक्ति का दुरुपयोग न करें। कटु बोलना भाषा का दुरुपयोग है। गृहस्थ झूठे आरोप न लगाए, फालतू ज्यादा न बोलें। वाणी के दो दोष हैंµएक तो बात को लंबा कर देना। दूसरा विष है, निस्सार बात करना। बिना मतलब बात करना।
वाणी के गुण हैंµपरिमित-सीमित बोलना, सारपूर्ण बोलना। वाणी बोलें तो अच्छी और शिष्ट भाषा बोलें। सत्य बोलो, प्रिय बोलो। ऐसा सच मत बोलो, जो अप्रिय हो। ऐसा प्रिय भी मत बोलो। जो झूठ हो। वाणी में सच्चाई और मधुरता हो। यह शाश्वत धर्म है। हम मन से स्मृति करते हैं। स्मृति में राग-द्वेष ज्यादा न आए। चिंतन करें तो किसी के बारे में बुरा न सोचें। भला और कल्याणकारी सोचें। कल्पना करें तो अच्छी करें। यह मन का सदुपयोग हो जाता है। हमारा मन बहुत चलता है। चिंतन में आदमी सुखी या दुःखी बन जाता है। यह एक प्रसंग से समझाया कि पिछले कर्मों के प्रभाव से तकलीफ आ सकती है, पर दुःखी न हों। आदमी आर्तध्यान में न जाए, समता-शांति में रहे। मन हमारा दुर्मन न बने, सुमन बने। जिंदगी में अनुकूलताएँ-प्रतिकूलताएँ आ सकती हैं। लाभ-अलाभ, निंदा-प्रशंसा में समता रखें।
प्रेक्षाध्यान भी अध्यात्म की साधना है। कोई राग-द्वेष नहीं। प्रियता-अप्रियता नहीं, बस तटस्थ भाव से देखो। हम हमारे चिंतन को आध्यात्मिक बना लें। शरीर में तकलीफ हो गई तो वेदना में भी शांति रखें। चिंतन को अच्छा रखें तो हम सुखी-शांति में रह सकते हैं। नकारात्मक चिंतन से आदमी दुःखी बन सकता है। हम जीवन में समता की साधना रखने का प्रयास करें, यह काम्य है।
आज सादुलपुर आना हुआ है। कई बरसों बाद आना हुआ है। यहाँ की जनता जनार्दनµजैन-अजैन जो भी है, गुडमैन बनें। सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति आदि अच्छी बातें बनी रहें। खूब शांति रहे। दूर-दूर से श्रावक-श्राविकाएँ इकट्ठे हुए हैं। सभी में समता, शांति, धर्म की भावना बढ़ती रहे।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि अज्ञानता अंधकार है। गुरु ही अज्ञान के अंधकार को दूर कर सकता है। गुरु महासूर्य होते हैं। गुरु के बिना घोर अंधकार होता है। गुरु के सामने शिष्य गलती करता है, तो वे संकेत करते हैं। पूज्यप्रवर के स्वागत में अणुव्रत समिति से भावना शर्मा, मेहता बालिका विद्यालय की बालिकाओं ने अणुव्रत आचार संहिता का उच्चारण व अणुव्रत गीत की प्रस्तुति दी। प्रेम कोचर, नीतू सेठिया, उषा दुगड़, मौनिका मालू, संगीता सेठिया, मनीष घीया, आ0म0 प्रवास व्यवस्था समिति से रतनलाल सेठिया, महिला मंडल, रवि मालू, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, कन्या मंडल, युवक परिषद, भोमराज सरावगी, निर्मल बोथरा, बुलबुल सेठिया परिवार, दीपिका छल्लाणी, माया दुगड़, सुराणा परिवार से विनय कोचर, विनोद कोठारी, पुष्पकांत शर्मा एडवोकेट, कुसुम ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।