दिव्य ज्योति को नमन

दिव्य ज्योति को नमन

तेरापंथ धर्मसंघ एक प्राणवान धर्मसंघ है। एक आचार, एक विचार, एक नेतृत्व ऐसे गौरवशाली धर्मसंघ को पाकर हम गौरवान्वित हैं। आचार्यश्री तुलसी ने आपकी दुर्लभ विशेषताओं पर दृष्टिपात किया। आपकी सहजता, सरलता, समर्पण, सहिष्णुता, सत्यनिष्ठा, पापभीरूता, आचार-निष्ठा, आत्मनिष्ठा, संघनिष्ठा, गुरुनिष्ठा, आदि अनेक विशेषताओं को ध्यान में रखकर आपको साध्वीप्रमुखा के पद पर आरूढ़ किया। थोड़े ही वर्षों में आपने साध्वी समाज के दिल को जीत लिया। गुरुदेव के मन में अगाध विश्वास पैदा किया। साध्वी समाज के विकास में आपके अमूल्य क्षण लगे। आपके कुशल नेतृत्व में साध्वी समाज ने विकास के शिखरों पर आरोहण किया। हमारा सौभाग्य है कि आप जैसे करुणामयी प्रमुखाश्री जी हमें मिले। आपका जीवन गंगासम निर्मल एवं पवित्र था। आपका अंतरिक एवं बाह्य व्यक्तित्व अलौकिक एवं विलक्षण था। आचार्यश्री तुलसी ने आपकी विनम्रता, गोपनीयता, गंभीरता आदि अनेक विशेषताओं का अंकन कर महाश्रमणी, संघनिर्देशिका आदि अलंकरण से अलंकृत किया। आपको वचन सिद्धि प्राप्त थी। आपकी वाणी में अपूर्व तेज व ओज था। आपके जीवन में साधना एवं बौद्धिकता का समन्वय था। आपकी बुद्धि व मेधा प्रखर थी। आप साहित्यकार, लेखिका, कवयित्री एवं वक्तृत्व कला आदि के साथ आपके जीवन में साधना की लौ निरंतर जलती रही। स्वाध्याय, जप एवं ध्यान आपकी साधना के अभिन्न अंग थे। तुलसी वाङ्मय दर्शन का कुशल संपादन कर तेरापंथ इतिहास में आप अमर हो गए। हमने देखा आचार्यप्रवर के मन में आपके प्रति बहुमान एवं सम्मान का था यही कारण है कि आचार्यप्रवर ने आपको असाधारण साध्वीप्रमुखा एवं शासनमाता के रूप में अलंकृत किया।
शासनमाता को पाकर हमारा रोम-रोम खुशियों से पुलक उठा। आपकी मृदु मुस्कान एवं आपकी सौम्यता के प्रति हर व्यक्ति आकृष्ट था। इतना सम्मान पाकर भी आपको अहंकार छू नहीं पाया। आपका जीवन जल में कमल की भाँति निर्लिप्त था। सम्मान पद प्रतिष्ठा का आपके मन पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि आपका जीवन अंतर्मुखी था। बीदासर मर्यादा महोत्सव के बाद आचार्यप्रवर की पावन सन्निधि में स्वास्थ्य लाभ के लिए संघ की मंगलभावना के साथ इलाज के लिए आपने दिल्ली प्रस्थान किया। वह मंगलमय दिन आज भी मेरी स्मृति पटल पर अंकित है, मेरे नयनों में अश्रुधारा बह रही थी छोटी-छोटी साध्वियाँ भी भाव-विभोर थी, उनके नेत्रों से भी आँसुओं के मोती टपक रहे थे। आपने असाध्य घोर वेदना को समता से सहन किया। आपकी धृति एवं सहनशक्ति बेजोड़ थी। माँ की ममता आपसे सदा मुझे मिलती रही। आपको कभी भूल नहीं पाऊँगी, जब-जब मैं अस्वस्थ होती आपका ऊर्जा भरा वरदहस्त मेरे सिर पर टिकता मुझे ऐसा लगता मानो मेरे भीतर शक्ति संप्रेषण हो रहा है। आपके मुखार्विंद से मंगलपाठ सुन मैं स्वस्थ हो जाती, किसने सोचा था दिल्ली में आपका महाप्रयाण हो जाएगा। आपका असमय में देवलोकगमन हम सबके मन पर वज्राघात का प्रहार था। क्रूर काल के सामने हम असहाय थे। जन्म और मृत्यु अवश्यंभावी घटना है जिसे रोका नहीं जा सकता। शासनमाता आपकी मुझे रह-रहकर याद आती है। आप मुझे देवलोक से ऐसी शक्ति प्रदान करें, मेरा मन शांत हो जाए। सूर्य की तेजस्विता, चाँद की शीतलता, सागर की गंभीरता आदि आपका जीवन अनेक गुणों का समवाय था। मेरे जीवन में भी इन गुणों का विकास हो, आप मुझे ऐसी शक्ति दें, जिससे मैं इन गुणों का जीवन में विकास कर सकूँ। हम सबके देखते-देखते एक जलती ज्योति-ज्योति में विलीन हो गई।
अस्तु उस दिव्य ज्योति को मेरा शत-शत नमन।
अंत में काव्य की दो पंक्तियों के साथ----

कब सोचा मैंने जीवन में, बिना तुम्हारे जीना होगा।
प्यास लगी इमरत की पर यों, कभी गरल भी पीना होगा।।
कब सोचा मैंने जीवन में---।