गौरव गाथा गाएँ हम
गौरव गाथा गाएँ हम।
शासनमाता महाश्रमणी का ध्यान लगाएँ हम।।
तीन-तीन आचार्यों के दिल में विश्वास जमाया।
अर्धसदी तक प्रमुखा पद को शोभित किया सवाया।
गुरुभक्ति में तन्मय मीरा से बल पाएँ हम।।
गण बगिया की हर डाली पर तुमने फूल खिलाएँ।
अपनेपन का स्नेह डालकर अनगिन दीप जलाएँ।
ममतामय उस दिव्य रूप को भूल न पाएँ हम।।
गुरु सुख से कर अनशन तुमने जीवन धन्य बनाया।
अंतिम श्वास लिया गुरु सम्मुख आराधक पद पाया।
शिल्पकार तुलसी कृति को दिल में बिठाएँ हम।।
ऊर्जामय उन हाथों ने कितनों के भाग्य संवारे।
प्यासी अंखिया काव्यलता की खोजे कहाँ पधारे।
दिव्य लोक से दो आशीर्वर बढ़ते जाएँ हम।।
लय: धर्म की लौ---