साध्वीप्रमुखा शासनमाता
जन मन में बसी हुई सूरत, साध्वीप्रमुखा शासनमाता।
हम विनय भाव से करे नमन, साध्वीप्रमुखां शासनमाता।।आं0।।
जब-जब स्मृतियाँ रह-रह आती, शब्दों से कुछ ना कह पाते।
तुम कहाँ विराजे हो जा के? जो नयनों में हरदम आते।
गम से बोझिल दिल ढूँढ रहा, साध्वीप्रमुखा शासनमाता।।
कितनों को चलना सिखाया है, कितनों को रहना सिखाया है।
कितनों को कहना सिखाया है, कितनों को सहना सिखाया है।
आदर्श तुम्हारा है ऊँचा, साध्वीप्रमुखा शासनमाता।।
चिंतन में रचनात्मकता थी अरु दिल में अनुपम निर्मला।
लेखन में जादूई क्षमता, व्यवहारों में थी समरसता।
सम, शम, श्रम का अद्भुत संगम, साध्वीप्रमुखा शासनमाता।।
हे सतिशेखरे! महायोगिनी! सरस्वती जगदम्बा हो।
हे लक्ष्मी स्वरूपा! गणवन की, तुम वसुंधरा का अचम्भा हो।
है अकथ कहानी बड़ी सुहानी, साध्वीप्रमुखा शासनमाता।।
हे कलाकृति! गुरु तुलसी की, तव जीवन जय-जयकारी है।
जो मिला हमें शुभ पथ दर्शन, वह पग-पग मंगलकारी है।
श्रद्धांजलियाँ सम्यक् झेलो, साध्वीप्रमुखा शासनमाता।।
लय: दिल लूटने----