श्रद्धार्पण गीत
जय-जय शासनमाता।
जुग-जुग रहसी अमर धरा पर थांरी गौरव गाथा।
शीष झुकावां, महिमा गावां पलिया ज्यांरै हाथां।।ध्रुव।।
म्हे सौभागी हाँ बड़भागी, थांरै युग में आया।
थां सरखा साध्वीप्रमुखा री, पाई स्नेहिल छाया।
कदे न भूलीजै खिणभर भी तव सन्निधिरी रातां।।1।।
भैक्षव गण के जिन शासन में है कर्तृत्व निरालो।
वो विराट व्यक्तित्व आपरो हर दिल भरै उजालो।
सदियाँ तक मुख-मुख पर रहसी कनकप्रभा युग बातां।।2।।
श्री तुलसी री परख अनूठी सिद्ध आप कर डारी।
महाप्रज्ञ अरु महाश्रमण री मिली खूब रिझवारी।
महाश्रमणी, महानिदेशिका, स्यूं बणग्या शासनमाता।।3।।
चंदेरी री चमक चाँदनी गंगाणै में दमकी।
गणिपद बिन भी गणी सम मानो हद पुण्याई चमकी।
अमरित मोच्छब सीन दिखायो सब नै जातां जातां।।4।।
करुणा वत्सलता रो दरियो नैणां में लहरातो।
जो भी आतो भारी मन स्यूं हलको सो हो ज्यातो।
श्रमणी गण नै चित्त समाधि, खूब दिराई साता।।5।।
छोटी स्यूं छोटी हर साध्वी गद्गद् कंठ पुकारै।
सजल नयन मानो मायड़ री मोहक छवि निहारै।
किण नै कहस्यां बात मांयली, अमिट बणी है यादां।।6।।
थांरी तुलना में नहि कोई नजर दूसरो आवै।
बो अनंत उपकार आपरो, शब्दां में न समावै।
जठै कठै भी लिज्यो अब सुध, ये ही म्हारा दाता।।7।।
लंबा लंबा कर विहार, गुरुवर हर महक कराई।
दर्शन, सेवा, अनशन पचखा, नैया पार लगाई।
‘संघप्रभा’ दुर्लभ दुनिया में ‘महाश्रमण’ सा त्राता।
राजधानी दिल्ली में बणगी अंतिम स्वर्णिम ख्यातां।।8।।
लय: संयममय जीवन हो----