शासनमाता

शासनमाता

शासनमाता को, करें हम वंदन बारंबार।
वीतराग साधिका की बोली जय-जयकार।

महाश्रमण की असीम कृपा का, किया अमृत पान।
लंबे विहार कर, पहुँचे दिल्ली में भगवान।
उजाला-उजाला समर्पण, तेरी महिमा का नहीं पार।।

जिनकल्पी ज्यों सही वेदना, साक्षी बने गुरुराज।
आत्मा भिन्न-शरीर भिन्न को, साध लिया सतीराज।
देख तेरी, इच्छा मृत्यु, शीश झुकाते हैं नर-नार।।

त्रिगुरुवर की सेवा कर, आराधक पद पाया।
आत्मा के समरांगण में, विजय ध्वज लहराया।
श्रुत साधन, से किया तुमने आत्मा का शंृगार।।

संघनिष्ठा, गुरुनिष्ठा, थी तीन लोक में प्रख्यात।
ऋजुता, मृदुता से हो गई, गण में आप विख्यात।
पंकज की है, ये विनती दर्शन दो एक बार।।

लय: मेरा जीवन---