बस इतनी सी है आरजू
गणवेदि पर सब वार दिया, संघ हित में जीवन खपाया है।
तब जाके हमने कहीं गण में, शासनमाता को पाया है।।
हे हिरकणी, वैदूर्यमणी, आधी दुनिया की शिरोमणि,
संयम सरणी, नमणि, खमणि, तेरी मूरत है जनमन हरणी,
हे विघनहरण मंगलकरणी, शुभवरणी शिवपथसंचरणी,
भवजलतरणी, हरमनरमणी, तेरी सूरत है संकटहरण,
तेरी यादों में बह जाएँ, तेरी नजरों में शय पाएँ,
बस इतनी है दिल की आरजू,
तेरे चरणों में रम जाएँ, तेरे नयनों में जम जाएँ।।
तुलसी की कमनीयकला का कायल है यह जग सारा,
ये अर्धसदी का सफर सुहाना, बाँट रहा है उजियारा,
निष्ठाकंचामृत में हर क्षण सराबोर रहता चिंतन वन,
लहू के कतरे-कतरे में गूंजित गुरु भक्ति का इकतारा।।
तेरी क्षमता को नमन करें, समता का अनुगमन करें।
गुण गुमन्नो का वरण करें, शिक्षा का अनुकरण करें।
बस इतनी है दिल की आरजू।।
हे सहिष्णुता की देवी! सहनशीलता में तेरे रग-रग में,
प्रतिकूल हवाओं में भी प्रमुदित दीप जलाए पग-पग में,
गण के खातिर, हमरे खातिर तुमने कितने बलिदान किये,
रातों रातों सिंचन देकर वर फूल खिलाए हर मग में।।
तेरे सपने सच कर पाएँ, तेरे कदमों पर चल पाएँ।
अरमानों पर लुट जाएँ, गण कार्यों में जुट जाएँ।
बस इतनी सी है आरजू।।
सृष्टि के कण-कण में तेरी गूँज रही विरुदावलियां,
उन्मुक्त दिशाएँ यश गाएँ, कीरत फैलाएँ तरु कलियां,
अवनि अंबर मिलकर लिखना चाहे तेरी गौरव गाथा,
सागर की लहरें उमड़-उमड़ अर्पित करती श्रद्धांजलियाँ।।
तेरी महिमा क्या हम गाएँ, कैसे तुमको विरुद्आएँ,
बस इतनी सी है दिल की आरजू।
तेरी राहों में बिछ जाएँ, तेरे सपने सच कर पाएँ।।
लय: तेरी मिट्टी में मिल जावा (केसरी)