कनकप्रभा केसर की क्यारी
अगणित माताओं में अभूतपूर्व, स्थान शासन माँ ने पाया।
देखने गणीन्द्र अभिवंदना, स्वर्ग धरा पर उतर आया।।
विनम्रता की उत्तल तरंगें, उठती विनय वारिधि महाश्रमण में,
जब-जब साध्वीप्रमुखा को, वंदन करते बजती भेरी त्रिभुवन में,
आँख बनकर आचार्यों की पाया सम्मान बहुमान सवाया।।
सौभाग्यशालिनी शासनमाता, सर्वसहा वसुधा-सी प्यारी,
अद्वितीय वीणापाणि वह, कनकप्रभा केसर की क्यारी,
अद्भुत चिंतन शैली से, बुद्ध-प्रबुद्ध सभी को लुभाया।।
अप्रमाद अश्व पर बैठी, श्रुत की मजबूती से लगाम थामी,
झांसी-रानी ज्यों महासमर में जूंझी, अतुलनीय मुक्तिपथ अनुगामी,
प्रमुखाओं में पहली प्रमुखाश्री, अंतिम क्षण तक इतिहास बनाया।।
दिया दिशा निर्देश उसी पथ, जीवन रथ गतिमान रहे,
बढ़ती रहूँ निरंतर आगे, चाहे कोई कुछ भी कहे,
आशीर्वर दे, वरद्हस्त से, सिर मेरा सहलाया।।