शासनमाता की सन्निधि सुखदाई
महाश्रमणी का महाप्रयाण सुण मनवा भया उदास।
मेरी इन अंखियों को होता नहीं विश्वास।।
बचपन में वैराग्य भावना उत्तम थी।
देखा हमने हर कला सर्वोत्तम थी।
चढ़ते यौवन में धारा था आत्माहित संन्यास।।
पता नहीं किन अणुओं से देह निर्मित थी।
गुरुवर तुलसी के हाथों से सर्जित थी।
सच कहती दीदार देखते बुझ जाती थी प्यास।।
शासनमाता की सन्निधि सुखदाई थी।
आजीवन सबको साता पहुँचाई थी।
फिर यह वेदना कैसे आई प्रश्न है मेरा खास।।
बौद्धिकता की पराकाष्ठा देख हर्षाते।
देख समर्पण श्रद्धा से हम झुक जाते।
इस जिह्वा से कह न सकेंगे हम तेरा इतिहास।।
लय: बार-बार---