शासनमाता का गौरव गाएँ
शासनमाता का गौरव गाएँ, श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ।
तेरी स्मृतियाँ हमें, हर पल आएँ, श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ।
तुलसी की अनमोल कृति को, जन-जन याद करेगा।
युगों-युगों तक जिनशासन में, तेरा नाम रहेगा।।
अनगढ़ पत्थर को देती थी, नित नूतन आकार।
संयममय जीवन हो, पाएँ उन्नत संस्कार।
समय-समय पर लेती थी, तुम सबकी संभाल।
स्नेहिल दृष्टि पाकर तेरी, हम होते खुशहाल।
करुणा का तुम, बहता निर्झर, उपशम रस की अविरल धारा।
जीवन निर्मात्री, शिक्षादात्री, का निशदिन यह कहना।
सम, शम, श्रम से मिले समाधि, सौहार्द शांति से रहना।।
शक्ति स्वरूपा! शक्ति सृजन की, हो तुम अजब कहानी।
बरगद बन शीतल छाया देती प्रतिपल सुहानी।
गुरु-भक्ति, संघ-निष्ठा की हो अमर निशानी।
आचार-आज्ञा आत्म निष्ठा, जन-जन ने पहचानी।
साधारण बन, असाधारण, प्रभु से पाई अभिनव अभिधा।
हे दिव्य ज्योत! तब ज्योति ने, अनगिन ज्योत जलाएँ।
तेरी शशि सम उज्ज्वल आभा, जनसंताप मिटाए।।
मातृहृदया! तव चरणों में, श्रद्धा का अर्पण।
भक्ति भावों से सज्जित है, तन मन का अर्चन।
कभी नहीं भूलेंगे शिक्षा, पाई जो हरपल।
क्षण भर भी स्मृतियाँ ये, होती न ओझल।
दर्श दिला दो, महाश्रमणीजी! इन प्यारी अंखियों को।
कदम-कदम बढ़ते जाएँ, दे दो शुभ आशीर्वर।
प्रगति शिखर पर चढ़ते जाएँ, संयम की राहों पर।।
लय: कितना प्यार रब ने---