जिनशासन में महक रही
जिसकी महिमा जिनशासन में महक रही।
साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा की कीर्तिपताका फहर रही।।
अर्धसदी साध्वी समाज का कुशल सफल नेतृत्व किया
श्रद्धा विनय समर्पण के दीवट पर जलता रहा दिया।
गुरुत्रय दृष्टि कषोपल पर तुम सौ टंची बन खरी रही।।
नैसर्गिक तव वचन सिद्धि ने कितनों का कल्याण किया
धन्य बन गया जिसको तुमने जीने का अहसास दिया
वत्सलता की मोहकमुद्रा हर दिल को झकझोर रही।।
तन का रोगी मन का रोगी जो भी चरणों में आया
रोगमुक्त वह बना तुम्हारे आंचल की पाकर छाया
असमाहित को समाधान की मिल जाती थी राह नई।।
अद्भुत कला तुम्हारी सबको एक तराजू से तोला
ममता का अनमोल खजाना संघ चतुष्टय हित खोला
इसीलिए कहता हर कोई, मुझ पर उनकी कृपा रही।।
श्रम की सतत प्रवाही सरिता गणवन को सरसब्ज किया
बहते बहते सहसा तुमने क्यों अपना पथ मोड. लिया
शासनमाता कहां तुम्हारा धाम बता दो पता सही।।
लय - खडी नीम के नीचे ---------