केशर क्यारी की महामहक
वह कौन जिसे मेरा मन चाहे बार-बार वंदन करना?
जिनकी नजरों में बहता था नित करुणा का पावन झरना।
वह वही जिन्हें मेरा मन चाहे बार-बार वंदन करना।।
वह स्वयं शक्ति थी, औरों में भी शक्ति जगाने को तत्पर।
वह स्वयं सिद्धि निज वाणी से जागृत विवेक करती सत्वर।
वह स्वयं शिवा कल्याणी, चाहा मृण्मय में जीवन भरना।
वह वही जिसे मेरा मन चाहे बार-बार वंदन करना।।
जिसके नयनों में नव विकास का सुंदर सा इक नक्शा था।
जिनके हाथों को गढ़ने का वरदान नियति ने बख्शा था।
पारस सम जिसका चरण-स्पर्श, अघ-दल भंजन दर्शन करना।
वह वही जिन्हें मेरा मन चाहे बार-बार वंदन करना।।
जिनकी आभा में कनकप्रभा, जिनके वचनों में भारी सुधा।
जिनके लेखन में मुखरित है सब गद्य पद्य साहित्य विधा।
‘केशरक्यारी’ की महामहक आसान नहीं अंकन करना।
वह वही जिसे मेरा मन चाहे बार-बार वंदन करना।।
संघ के इतिहास में अंकित अमिट उज्ज्वल छवि।
सबके हृदय में ध्रुव अटल वह नित्य ज्योतिर्मय जयी।
उस परम पावन आत्मा को अर्पित भावों के सुमन।
श्रद्धांजलि सविनय समर्पित, श्रद्धासिक्त शत-शत नमन।।