विवेक शून्य आदमी अंधे के समान होता है: आचार्यश्री महाश्रमण
सिवानी, 13 अप्रैल, 2022
हरियाणा प्रवास का अंतिम पड़ाव सिवानी। जन-जन के तारक आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में हम कार्य करते हैं। कार्य करने में हमारा विवेक अच्छा रहता है, तो कार्य भी अच्छा हो सकता है। विवेक धर्म है। जिस आदमी में कर्तव्य और अकर्तव्य का विवेक नहीं होता है, उसका तो कभी बड़ा अनिष्ट भी हो सकता है।
विवेक शून्य आदमी पशु के समान हो जाता है। विवेक तत्त्व एक प्रकार की आँख होती है। दूसरी आँख है कि विवेकी आदमी के साथ रहना। विवेक शून्य आदमी अंधे के समान होता है। जो गलत मार्ग पर जा सकता है। बोलना, न बोलना बड़ी बात नहीं, बड़ी बात है उसमें विवेक रखना। विवेक का महत्त्व है। संयम की चेतना कितनी जागी, यह एक प्रसंग से समझाया कि बाहरी आँखों से ज्यादा महत्त्व भीतर की विवेक चेतना के जागरण का है।
विवेक की आँख तीसरा नेत्र है। आदमी क्या कार्य करे, क्या न करे, यह विवेक हो। थोड़े लाभ के लिए बहुत नुकसान उठाना, यह मूढ़ता की बात हो सकती है, यह एक प्रसंग से समझाया कि समझ और विवेक हमारा बढ़िया होना चाहिए। पीपल को बाँधकर खींचने से पीपल का पेड़ घर में नहीं आता है।
शत्रु आदमी समझदार है और मित्र आदमी अविवेकी है तो कई बार विवेकी शत्रु अच्छा हो सकता है। यह भी एक प्रसंग से समझाया कि अविवेही मित्र कभी नुकसान कर सकता है। बिना मतलब दुराग्रह करके बात को तानना नहीं चाहिए। सत्याग्रह तो ठीक है। हमारी समझ शक्ति अच्छी हो, विवेक चेतना रहे। विवेक के साथ शांति हो।
हमारी विवेक चेतना अच्छी रहे कि थोड़े लाभ के लिए ज्यादा नुकसान का सौदा अच्छा नहीं। यह नहीं करना चाहिए। आज सिवानी आए हैं। वयोवृद्ध साध्वी मोहनकुमारी जी से मिलना हुआ है। छः साध्वियाँ हैं। अच्छी साधना-सेवा चलती रहे।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में शासनश्री साध्वी प्रेमलता जी, साध्वी लाघवप्रभाजी, साध्वी मनस्वीप्रभाजी ने भावों व समुह गीत से अपनी भावना अभिव्यक्त की।
पूज्यप्रवर के स्वागत में स्थानीय महिला मंडल, स्थानीय सभाध्यक्ष अमित कुमार जी लोहिया, रतनलाल बंसल, ज्ञानशाला ज्ञानार्थी, डॉ0 एस0आर0 सिवा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला ज्ञानार्थियों ने सुंदर प्रस्तुति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।