भगवान महावीर आस्तिक दर्शन के प्रवक्ता थे: आचार्यश्री महाश्रमण
मोतीपुरा, 14 अप्रैल, 2022
चैत्र शुक्ला त्रयोदशी, भगवान महावीर का जन्म कल्याणक दिवस। वर्तमान के वर्धमान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रभुवीर को अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए फरमाया कि दुनिया में अनेक प्रकार के आदमी होते हैं। उनमें कई-कई व्यक्ति पुरुषोत्तम होते हैं। लोकोत्तम और महत्तम होते हैं।
भगवान महावीर को हम लोकोत्तम, पुरुषोत्तम और महत्तम व्यक्ति भी कह सकते हैं। साधु भी लोकोत्तम होते हैं। भगवान महावीर भी साधु थे पर वे साधु की भूमिका से भी ऊँचे आसन पर विराजमान थे। वे जन्मे तब तो शिशु ही थे, महावीर तो बाद में बने थे।
आज चैत्र शुक्ला त्रयोदशी भगवान महावीर की जन्म जयंती। आज की तिथि में एक ऐसा महान व्यक्तित्व जन्मा था, जिसकी महानता की रश्मियाँ आज भी ऊर्जा प्रदान करने वाली सिद्ध हो सकती हैं। जिस आदमी का कर्तृत्व और व्यक्तित्व इस रूप में निखरता है कि वह आदमी गुणवत्ता की दृष्टि से पार्थक्य करने वाला बन जाता है।
भगवान महावीर एक साथ महावीर नहीं बन गए थे। पिछले कितने जन्मों में उन्होंने तपस्या-साधना की थी। बाद में निष्पत्ति आई और वे भगवान महावीर के रूप में हमारे सामने आए। हम लोग जैन शासन में साधना कर रहे हैं। जैन शासन का वर्तमान स्वरूप जो है, उसे हम भगवान महावीर से संबंध मान सकते हैं। अतीत में 23 तीर्थंकर हुए हैं।
हम भगवान महावीर की संतानें हैं। जैन दर्शन आत्मवाद, कर्मवाद, लोकवाद, क्रियावाद को मानता है और भी कई सिद्धांत हैं। जैन दर्शन पुनर्जन्म को मानता है। ईश्वरीय कृतत्व को नहीं मानता। पुण्य-पाप, स्वर्ग-नरक, को मानता है। वह आस्तिक दर्शन है। भगवान महावीर आस्तिक दर्शन के प्रवक्ता थे। हमारे जैन दर्शन में 32 आगम हमारी परंपरा में प्रमाण के रूप मंें प्रतिष्ठित ग्रंथ के साथ में सम्मत है।
आचारांग आगम के नौवें अध्ययन में भगवान महावीर का जीवन संक्षेप रूप में वर्णित है। आगम ग्रंथ एक महत्त्वपूर्ण निधि है। आगम स्वाध्याय में हम समय जरूर लगाएँ। भगवान महावीर के जन्म कल्याणक में तो सारे संप्रदाय साथ में बैठते हैं। भगवान महावीर के तो श्रावक समाज भी हैं, उनमें भी धर्म की भावना रहे। श्रावक समाज में भी भक्ति है। भक्ति का भी महत्त्व है। चेतना का एक साधन भक्ति है। भक्ति के साथ ज्ञान व जैन दर्शन को भी सीखने का
प्रयास हो।
त्याग, बारह व्रत, सामायिक की साधना भी चले। साधना, आराधना, चारित्र की भी होती रहे। खान-पान शुद्ध रहे। नशामुक्ति रहे। नवकार मंत्र का जप भी चलता रहे। महावीर जयंती को मनाना भी अच्छी बात है। भगवान महावीर की वाणी वर्तमान में प्राप्त नहीं है। गुरुदेव तुलसी व आचार्य महाप्रज्ञ जी की वाणी तो अमृतवाणी के माध्यम से प्राप्त है।
हरियाणा की थोड़े दिन की यात्रा थी, पर उनमें भी कितना उत्साह है। आध्यात्मिक भावना का होना अच्छी बात है। भगवान महावीर की जन्म जयंती मना रहे हैं। हमारे साधु-साध्वियाँ आगम स्वाध्याय जितना कर सकें करें। प्रतिक्रमण अच्छा करें। श्रावकों मेें खान-पान की शुद्धि का ध्यान रहे। श्रावक समाज में तत्त्व-ज्ञान, श्रद्धा का भाव पुष्ट रहे। भगवान महावीर की जन्म जयंती का दिन हमें प्रेरणा देने वाला सिद्ध होे, यह काम्य है।
मुख्य मुनिप्रवर ने कहा कि नंदी सूत्र में कहा गया है कि जगत के समस्त योनियों के विज्ञाता, जगद् के गुरु, जगद् को आनंद देने वाले, जगत के नाथ, जगत के बंधु जगत के पितामह, भगवान महावीर की जय हो। भगवान महावीर कितने कष्टों को सहन कर महावीर बने। उन्होंने ऐसा उपदेश दिया, जिससे समस्त मानव जाति का कल्याण हो सके।
साध्वीवर्या जी ने भगवान महावीर के अनेकांतवाद दर्शन को समझते हुए कहा कि आज का दिन भगवान महावीर की स्तुति करने का दिन है। उनके सिद्धांतों, उनके नियमों को समझने-पढ़ने का दिन है। संकल्पित होने का दिन है। भगवान महावीर ने सत्य की प्राप्ति के लिए अनेकांत का दर्शन दिया।
मुनि धर्मरुचि जी, मुनि राजकुमार जी, साध्वी चारित्रयशाजी, साध्वी वैभवविभा जी, साध्वी मैत्रीयशाजी ने भावों व गीतों से अपनी भावांजलि भगवान महावीर के प्रति दी।
तेरापंथ महिला मंडल, सादुलपुर सुरेंद्र जैन हरियाणा प्रांतीय सभा से संगीता सेठिया, तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, राजगढ़ ने भी अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने सुमधुर गीत ‘महावीर का नाम मंगल मंगल है’ का संगान किया।