पुण्यवत्ता की पृष्ठभूमि में चेतना की निर्मलता रह सकती है: आचार्यश्री महाश्रमण
जिगसाना ताल, 19 अप्रैल, 2022
आचार्य भिक्षु के परंपर पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी आज प्रातः 11 किलोमीटर का विहार कर जिगसाना ताल के राजकीय आदर्श उच्च माध्यमिक विद्यालय पधारे।
मुख्य प्रवचन में मानवता के महामसीहा आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि भौतिकता का संबंध पुण्यवत्ता के साथ है और आध्यात्मिकता का संबंध चेतना की निर्मलता के साथ है। पुण्यवत्ता की पृष्ठभूमि में भी चेतना की निर्मलता रह सकती है।
भगवान शांतिनाथ जैन शासन में जो वर्तमान अवसर्पिणी के इस भरत क्षेत्र में हुए हैं। वे सोलहवें तीर्थंकर हुए हैं। तीर्थंकर बनना भी बहुत उच्चासन पर विराजमान होना हो जाता है। तीर्थंकर से पहले चक्रवर्ती भी थे। भौतिक दुनिया का सबसे बड़ा आदमी चक्रवर्ती होता है।
अध्यात्म के क्षेत्र में जो अधिकृत होते हैं, स्वयं तो सबसे बड़े हैं, साथ में पुण्यवत्ता भी है, वो तीर्थंकर होते हैं। चक्रवर्ती में भौतिकता का प्राधान्य है, तीर्थंकर में आध्यात्मिकता का प्राधान्य तो है ही साथ ही तीर्थंकर नाम गौत्र की पुण्यवत्ता भी भोगते हैं। भगवान शांतिनाथ चक्रवर्ती भी हुए और तीर्थंकर भी हुए।
तिरेसठ श्लाका पुरुष बताए जाते हैं। 54 उत्तम पुरुष बताए गए हैं। 24 तीर्थंकर, 12 चक्रवर्ती, 9 वासुदेव और नौ बलदेव। तिरेसठ श्लाका पुरुष में इन 54 के सिवाय 9 प्रतिवासुदेव भी होते हैं। इनमें कोई-कोई व्यक्ति दो-दो पद चक्रवर्ती व तीर्थंकर पद को प्राप्त कर लेते हैं।
जो तीर्थंकर होते हैं, वो तो परमशांति में रहते हैं। उनको कोई चिंता-भय नहीं होता है। सारे के सारे शांतिनाथ हो जाते हैं। जितने भी बुद्ध-तीर्थंकर अतीत में हुए हैं। जितने भी आगे भविष्य में होंगे, उन सबका प्रतिष्ठान-आधार शांति है। वे सब शांतिमय होते हैं।
साधु के तो ज्यादा शांति रहनी चाहिए, गृहस्थ के भी शांति रहनी चाहिए। संत के शांति होती है, क्योंकि वे त्यागी होते हैं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शांति रहे। खुद शांति में रहें, दूसरों को भी शांति में रहने दें। दूसरों की शांति में इरादन रूप से बाधक नहीं बनना चाहिए।
आदमी गुस्सा, लोभ, भय, चिंता से अशांति में जा सकता है। साधना से शांति रहती है। त्याग-तपस्या आत्म-रमण में रहें। साधना से सुविधा मिल सकती है। परिग्रह ज्यादा काम में नहीं आ सकता है। साधु तो राजा से भी बड़ा होता है। देवता भी उसको नमन करते हैं, जिसका मन सदा धर्म में रमा रहता है। साधु के लिए देवता वंदनीय नहीं है परंतु देवता के लिए साधु वंदनीय होते हैं।
साधु के पास जो धन है, वो किसी के पास नहीं है। उसके पास त्याग-तप और ज्ञान का धन है। कई उपासक भी ऐसे हो सकते हैं। उपासकों, गृहस्थ श्रावकों में तत्त्व-ज्ञान अच्छा हो सकता है। पर चारित्र वाला धन साधु के पास होता है। साधना धन साधु होते हैं। साधनों से सुविधा, साधना से शांति।
पुज्यवर के स्वागत में विद्यालय के प्राधानाचार्य किशन सिंह राठौड़, शिक्षक बहादुर सिंह, सरपंच धर्मवीर, तारानगर कन्या मंडल, तेरापंथ युवक परिषद, दीपिका छल्लाणी, ज्योति बरमेचा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।