20वीं सदी के देदीप्यमान दीवाकर थे आचार्य तुलसी
मंडी आदमपुर
स्थानीय तेरापंथ भवन में गणाधिपति गुरुदेव तुलसी जी की 25वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम में शासनश्री मुनि विजय कुमार जी ने कहा कि गुरुदेव तुलसी तेरापंथ धर्मसंघ के नवमें अनुशास्ता थे। कार्तिक शुक्ला-2, 1971 (20 अक्टूबर, 1914) के दिन उन्होंने लाडनूं की पुण्य धरा पर जन्म लिया। 11 वर्ष की वय में उन्होंने कालू गुरु के करकमलों से संयम स्वीकार किया। 22 वर्ष की लघुवय में वे विशाल तेरापंथ धर्मसंघ के अनुशास्ता बन गए। शिष्य-शिष्याओं के सर्वांगीण निर्माण के लिए वे निरंतर प्रयत्नशील रहते थे। मानव जाति के हित का चिंतन भी सदा उनके सामने रहता था।
अणुव्रत आंदोलन का प्रवर्तन करके वे मानव जाति के मसीहा बन गए। बिना किसी जाति भेद व संप्रदाय भेद के लोगों ने इसे स्वीकार किया। अनेक नास्तिक व्यक्तियों ने इस सार्वभौम धर्म की बात को पसंद किया। कार्यक्रम में तेरापंथी सभा के संरक्षक घीसाराम, प्रधान विनोद जैन, गुलशन, राधेश्याम, उमा, कांता, योगिता, वर्षा, निधि ने गीत व भाषण के द्वारा अपने आराध्य गुरु तुलसी के प्रति भावांजलि प्रकट की। कार्यक्रम का प्रारंभ सामुहिक जप से हुआ। शासनश्री मुनिश्री ने गुरुदेव तुलसी की आरती का संगान किया।