गौरव गाथा गावां हां
शासनमाता रे शासनमाता रे
चरणां में शत्-शत् शीष झुकावां हां।
कलकत्ता महानगरी में थे शुभ मुहुरत में जन्म लियो
तुलसी मुख स्यूं दीक्षा लेकर जीवन सफल कियो।
संस्कृत प्राकृत में पारंगत प्रवचन पटुता प्राप्त करी।
ज्ञान ध्यान में लीन रहा थे कनक कसौटी स्यूं निखरी।
देश विदेशां में विचरया थे शासन ने चमकायो है
तेरापंथ रो गौरव शिखरां खूब चढ.ायो है।
वृद्धावस्था भीषण व्याधि सबल मनोबल हो थांरो
कर्म निर्जरा लक्ष्य बणायो भार उतारयो कर्मा रो।
पांच दशक तक संघ सुरक्षा और शासना सुखकारी
जागरूक बण आप कराई शासन रखवारी।
गुरु चरणां री सन्निधि में थे जीवन नैया ने तारी
राजधानी में रंग अनूठो लागी रचना मनहारी।
धन्य-धन्य हे शासनमाता बलिहारी म्हे जावां हां
युगो-युगों तक याद करांला गौरव गाथा गावां हां।
तर्ज-होली खेलो रे----