धरें हम शासन माँ का ध्यान
धरें हम शासन माँ का ध्यान।
शासनमाता तुम थी गण की आन, बान और शान।
संघ-सीप की थी तुम मोती।
संघ दीप की थी तुम ज्योति।
शासनमाता तुम इकलौती।
सदा बढ़ाया सतिशेखरे, शासन का सम्मान।।
व्यक्तित्व तुम्हारा था तेजस्वी।
कर्तृत्व तुम्हारा महायशस्वी।
वर्चस्वी तुम, थी ओजस्वी।
चरण-शरण में जो भी आया पाया उसने प्राण।।
याद करेगी दुनिया सारी।
कहाँ ढूँढ़े वो मूरत प्यारी।
जाएँ हम तेरी बलिहारी।
गण का हम सब मान बढ़ाएँ, दो ऐसा वरदान।।
एक बार तो दर्शन दे दो।
मन की पीड़ा को तुम हर दो।
खुशियों से अब झोली भर दो।
श्रद्धांजलि हम देते तुमको नत है तन-मन प्राण।।
लय: निहारा तुमको---