महिमा हर जन-जन गाएं
जय-जय हे शासनमाता, श्रद्धा से शीष झुकाएं
ज्योतिर्मय जीवन गाथा, इस गण का कण-कण गाएं।।
पावन चंदेरी भू पर, कमनीय कला बन आई
भैक्षवगण की सुषमा को, बन कनकप्रभा महकाई
तुलसी की कृति विलक्षण, महिमा हर जन-जन गाएं।
वैराग्य धरा पर आया, लेकर अभिदान तुम्हारा
थी शांत सौम्य मुद्रा तव, धरती सा रूप सुनहरा
समता क्षमता ममता की, मूरत को प्रतिपल ध्याएं
हे श्रमणी गण सरदारां, नैतृत्व की शैली विलक्षण
अनुशासन में भी बहती, करुणा की धार विचक्षण
सन्निधि के वे मधुरिम पल, हम कभी भूल ना पाएं।
सेवाओं को तेरी हम, कैसे विस्मृत कर पाएं
तुम जलती ज्योत हो गण की, जो हर पल राह दिखाएं
कृपा पाई गुरुत्रय की, इतिहास स्वयं रच जाएं।।
थी प्रबल पुण्याई तेरी, गुरुवर खुद दौड. आएं
करते जब सविनय वंदन, हम अपने भाग्य सराएं
भैक्षवगण की गरिमा को, हम कैसे मुख से गाएं
हे राजधानी भारत की, दिल्ली की धरा शुभंकर
बन गई अब तीरथभूमि, पा यह ऐतिहासिक अवसर
वसुगढ. की पुण्य धरा से, अन्तर्मन भाव सुनाएं ।