शासनमाता स्मृति अर्ध्य
जय-जय शासन माता
जन-जन मन गाता, थांरो-थांरो उपकार
जद-जद देखता दीदार, मिटतो सकल क्लेश विकार
शासनपति रे चरणां काड्यो, सारी साधना रो सार।।
चित्त प्रसन्नता हरदम रहती आया कष्ट महान हो
सहनशीलता री प्रतिमूर्ति वत्सलता प्रतिमान हो
देकर चित्त समाधि सब नै पाता मन में हर्ष अपार।।
प्रवचन शैली, नई नवेली बात सदा ही आंवती
कोई भी सबजेक्ट इसो नहीं जिन पर कलम न चालती
अजब-गजब बौद्धिकता ही थांरी रचना रो संसार।।
प्रेरणा, प्रोत्साहन देता, करता सारणा-वारणा
जोरां जगाता साध-सत्यां में कार्यदक्ष मन भावणा
श्रावक-श्राविका में भरता गहरा संघ रा संस्कार
गुरुवां रो विश्वास जित्यो सहज समर्पण भाव स्यूं
बण विनम्र तर्क भी रखता बहता निज स्वभाव स्यंू
अपणी कार्य शैली स्यूं बण्या थे सगलांरा गलहार
महाश्रमणी, साध्वीप्रमुखाश्री, संघ महानिदेशिका
असाधारण, शासनमाता जीवन री प्रतिलेहिका
गुरुवरां री किरपा सवाई पाई महिमा अपरम्पार ।।
गुरु तुलसी स्यूं दीक्षित, शिक्षित तुलसी आत्माराम हा
महाप्रज्ञ री प्रज्ञा, प्रेक्षा प्रेरणा अभिराम हा
महाश्रमण सा देव पुरुष स्यूं पचख्यो अंतिम में संथार ।।
महाश्रमण सा देव पुरुष चरणां में पहुंच्या स्वर्ग मंझार।।
बात - बात में याद आसी थांरी शिक्षा महासती
साझ दिराज्यो नन्दनवन रे पुष्पां ने हे महासती
थांरै साधना पथ चाल म्हैं भी पहुंचा मुक्ति द्वार
लय: शासन कल्पतरु---