विकार से दूर होकर अच्छे संस्कार प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ें: आचार्यश्री महाश्रमण
तारानगर, 20 अप्रैल, 2022
दिव्य दिवाकर, शांत सुधाकर आचार्यश्री महाश्रमण जी आज 12 किलोमीटर विहार कर तारानगर में पधारे। तारानगर का जन-जन पुज्यवर की अभिवंदना में पलक पावड़े बिछाए उपस्थित था। महामनीषी ने पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए फरमाया कि दुनिया में धर्म चलता है, अधर्म भी चलता है। शांति का मार्ग धर्म है, अध्यात्म है। अधर्म यानी हिंसा-झूठ आदि अशांति कारक तत्त्व भी होते हैं और आत्मा को पतित बनाने वाले होते हैं।
धर्म के तीन प्रकार बताए गए हैंµअहिंसा धर्म है, संयम धर्म है, तप धर्म है। साधु तो गृहत्यागी होता है। वह तो उच्चकोटि की अहिंसा, संयम और तप की आराधना करने वाला होता है। साधु के पाँच महाव्रत होते हैं। पहला व्रत है सर्व प्राणातिपात विरमण यानी अहिंसा। साधु के रात्रि भोजन विरमण होता है, वह भी अहिंसा का ही रूप है, साथ में संयम भी हो जाता है।
साधु तो रात में सिर्फ धर्म साधना करे। रात्रि भोजन का त्याग गृहस्थ के लिए हितकारी होता है, अहिंसा की साधना हो जाती है, यह एक प्रसंग से समझाया। साधु भिक्षा से अपना काम चलाता है। गृहस्थ जीवन में जितना हो सके अहिंसा के पथ पर चलना चाहिए। संकल्पजा हिंसा से तो गृहस्थ को भी बचना चाहिए।
अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम भी अहिंसा से जुड़े हुए हैं। बड़ी झूठ गृहस्थ न बोले। इससे आत्मा मलीन बनती है। वृत्ति-आजीविका प्राप्ति में भी धर्म को आदमी जोड़ दे। अनैतिकता, बेईमानी, धोखाधड़ी मेरे द्वारा न की जाए। जीवन में सच्चाई-ईमानदारी रहे। ईमानदारी देवी भगवती की फोटो दुकानदारी में रहे।
धर्म स्थान में धर्म होना अच्छा है, पर कर्मस्थान में भी अपने ढंग का धर्म होना चाहिए। गृहस्थ जीवन में नशीले पदार्थों के सेवन से बचें। हम अहिंसा यात्रा कर रहे थे, उसमें तीन बातें बता रहे थे, सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति। गृहस्थ जीवन में संयम रहे। नशा कठिनाईयाँ पैदा कर सकता है। एक घटना से यह समझाया कि नशामुक्ति से जीवन सुधर सकता है।
प्रेक्षाध्यान से हमारे क्रोध, मान, माया, लोभ ये कषाय शांत हो सकते हैं, आत्मा निर्मल बन सकती है। विकार दूर होकर अच्छे संस्कार रहेंगे। बच्चों में ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार आएँ। जीवन विज्ञान से ये कार्य हो सकते हैं। बच्चे अच्छे संस्कारित होंगे तो आने वाली पीढ़ी अच्छी हो सकती है। धर्म एक ऐसा तत्त्व है, जो हमारी आत्मा का कल्याण करने वाला है।
धर्म से अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है। अहिंसा, संयम और तप से जीवन अच्छा रह सकेगा। ये अहिंसा, संयम, तप रूपी धर्म हमारे जीवन में रहे। जितना रह सके, उतना रखने का प्रयास करें।
आज इस थली की यात्रा में तारानगर आना हुआ है। सन् 2000 में गुरुदेव महाप्रज्ञजी ने मर्यादा महोत्सव किया था। एक दिन का समय है, फिर भी अनेक श्रद्धालु यहाँ पहुँचे हैं। अच्छी जागरूता, भावना, कर्तव्यनिष्ठा है। तारानगर के सभी निवासी-प्रवासी लोगों में आध्यात्मिकता, नैतिकता की चेतना बनी रहे। शहर में शांति व चित्त समाधि रहे, लोगों में सद्भावना रहे। संयम की चेतना भी रहे।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि भारतीय परंपरा में तीन चीजों को दुर्लभ बताया गया हैµकल्पवृक्ष, कामधेनू और चिंतामणी रत्नµये तीनों भौतिक आकांक्षाएँ पूर्ति करते हैं। तुलसीदास जी ने कहा हैµसंत समागम हरिकथा, तुलसी दुर्लभ दोय। तारानगरवासियों को संत समागम व आचार्यप्रवर का प्रवचन अमृत वाणी के रूप में सुनने का अवसर मिल रहा है। शंकराचार्य ने कहा है कि मुमुक्षु भाव, मनुष्यत्व व महान व्यक्तियों की सन्निधि मिलना दुर्लभ है। आज ये सब आपको उपलब्ध है।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में मुनि ऋषभ कुमार जी जो तारानगर से हैं, अपनी अंतर्भावना अभिव्यक्त की। समणी मृदुप्रज्ञाजी ने भी अपने भाव अभिव्यक्त किए।
यहाँ के विधायक नरेंद्र बुड़निया, तेरापंथ महिला मंडल, सभाध्यक्ष राजेंद्र बोथरा, तेयुप, अशोक बरमेचा, सभा सदस्य, कन्या मंडल, मुमुक्षु रोशनी लुणिया, सरीता बैद, अणुव्रत समिति से वीरेंद्र सिंह राठौड़, राजस्थान सेवा संस्थान से ओम कड़वासल ने पूज्यवर के स्वागत में अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने आचार्य महाप्रज्ञ जी द्वारा रचित गीत ‘आओ स्वामीजी’ का सुमधुर संगान किया।