सक्षमता में शांति रखना बड़ी बात होती है: आचार्यश्री महाश्रमण
सरदारशहर, 2 मई, 2022
मायड़ भूमि में साधना के श्लाकापुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि दस धर्मों में एक धर्म हैµक्षमा। शांति होने पर भी शांति रखना। ईंट का जवाब पत्थर से नहीं, नरमाई से दें। शत्रु के साथ भी मित्रतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। विरोधी के प्रति भी मंगलभावना रखना। विरोध को विनोद समझकर शांति रखना।
मजबूरी में प्रतिशोध लेना बड़ी बात नहीं। चंडकौशिक सर्प को भगवान महावीर का
सान्निध्य मिला। वो तेज, सक्षम सर्प उसने क्षमा धारण कर ली। सक्षमता में शांति रखना बड़ी बात
होती है।
हम लोग सामुहिक जीवन जीते हैं, कोई कठोर व्यवहार कर लें, वहाँ समता-शांति रखें। संत
वह होता है, जो शांत होता है। यह एक प्रसंग से समझाया। नवनीत और संत के हृदय में अंतर है। नवनीत खुद तपता है, तो पिघल जाता है। संत का हृदय दूसरों के ताप को देखकर पिघल जाता है। गृहस्थ भी इस माने संत बन सकते हैं। जीवन में सादगी हो, विचार उच्च हों। गृहस्थ भी महानता, उदारता रखे।
छोटा सा सूत्र है, कोई खास बात नहीं। इसे समझकर बात को छोड़ दो। अपनी आलोचना का जवाब अच्छे कार्य से दें। इससे विरोधी भी प्रशंसक बन सकते हैं। किसी के कहने से आदमी खराब नहीं होता। हमें क्षमा धर्म को जीवन में धारने का, प्रयुक्त करने का प्रयास करना चाहिए।
साध्वीवर्याजी ने कहा कि मैं धर्म को जानता हूँ, पर मेरी उसमे प्रवृत्ति नहीं है। मैं अधर्म को जानता हूँ पर मेरी उससे निवृत्ति नहीं है। अच्छाई को जानता है, पर आचरण नहीं करता है। बुराई को भी जानता है, पर छोड़ता नहीं है। बड़ी बुराई अन्जान में नहीं होती, उसके पीछे कार्य करता हैµमोहकर्म। व्यक्ति चाहे तो कषायों को उपशांत कर सकता है।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में साध्वी वीरप्रभाजी ने अपनी भावना रखी। सरदारशहर की उपासक श्रेणी द्वारा गीत की प्रस्तुति हुई। नेहा दुगड़, सुमन भंसाली, मनीषा बैद, विनीता दफ्तरी व भानुप्रताप बरड़िया ने भी गीत की प्रस्तुति दी।
मुनि दिनेश कुमार जी ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए साधुचर्या के बारे में समझाया।