नभ झुका नमन करते तुमको
नभ क्षुका नमन करते तुमको धरती ने पुण्य प्रणाम किया।
इस तेजस्वी संन्यासी को रवि किरणों ने सम्मान दिया।
तब क्षितिज पार गूँजी सरगम।
जय युगप्रधान जय पुरुषोत्तम।।
आस्था की अजब हिलोर उठी
सबकी सीपीसी आँखों में
किस महाशक्ति ने जनम लिया।
परिचर्चा लाखों लाखों में।।
इस अमल धवल कंुदन काया से देख तुम्हारा इतना श्रम।।
जय युगप्रधान जय पुरुषोत्तम।।
जन-जन के प्रश्नों का उत्तर
अद्भुत व्यक्तित्व तुम्हारा है
तुम पूर्ण काम तुम बुद्ध वीर
या महाकाव्य रस धारा है।।
जान सके ना कोई भी तेरे जीवन का अर्थ अगम।।
जय युगप्रधान जय पुरुषोत्तम।।
लगता कोई अवतारी हो
सब पाप-ताप-संताप हरो
आकंठ भरा हूँ मैं विष से
अमृत रस का संचार करो।
पदचिÐों पर चल पाऊँ मैं कर दो मेरा अब पंथ सुगम।।
जय युग प्रधान जय पुरुषोत्तम।।
सुन आर्त पुकार जमाने की
करुणा की धारा फूट पड़ी
मिल गया स्वयं ही समाधान
दी नैतिकता की दिव्य जड़ी।
छलछला रही जीवन धारा गंगा यमुना सा है संगम।।
जय युगप्रधान जय पुरुषोत्तम।।
युग की इस रीती गागर को
भर दो अब करुणा के सागर
अनगिन कंठों की प्यास बुझे
सुनकर तेरे बासंती स्वर।
उतरे धरती पर चाँद नरवत मावस भी बन जाय पूनम।
जय युगप्रधान जय पुरुषोत्तम।।
सत शिव अक्षय वट छाया से
परितप्त प्राण को छाँह मिली
मरु से सूखे वन प्रांगण में
नैतिक फुलवारी आज खिली।
स्वप्न फला युग मानस का तुम नस सृजन के हो उद्गम।
जय युगप्रधान जय पुरुषोत्तम।।
ज्योतिर्मय आभा मंडल के
आगे झुकता है कौन नहीं?
जो आता सब कुछ पाता है
नेहिल नजरें यह बोल रही।
हिंसा पर विजय अहिंसा की विभूता का फहराया परचम।
जय युगप्रधान जय पुरुषोत्तम।।
युग के पृष्ठों पर एक नया
इतिहास लिखा यह जाएगा
तुमसे पा पथ दर्शन भारत
फिर विश्व गुरु कहलायेगा।
जन-जीवन यह अभिस्नात हुआ तुम पावन तीरथ हो जंगम।
जय युगप्रधान जय पुरुषोत्तम।।
माँगा वरदान प्रभो! तुमसे
शासनमाता ने जिस पल में
खुशियों के आँसू छलक पड़े
जो छुपा लिए थे आंचल में।
सबके दिल भीग गए थे तब यह याद रहेगी जनम-जनम।।
जय युगप्रधान जय पुरुषोत्तम।।