हे युगप्रधान गुरुवर
हे युगप्रधान गुरुवर जी, संघ तुम्हें बधा रहा।
वर्धापना की शुभ बेला, निज भाग्य सराह रहा।।
देवो सम तेजस्वी विभूवर, नयनों में वत्सलता।
ऋजुता, मृदुता, करुणा का, सागर लहरा रहा।।
जिनशासन, भैक्षवगण का, यश फैला गणिवर का।
संवत्सरी एकता का, जन-जन गुण गा रहा।।
शासनमाता की अंतिम, इच्छा को पूर्ण किया।
युगप्रधान के पद को, मैं हूँ स्वीकार रहा।।
सरदारशहर की धरा पर, आया स्वर्णिम अवसर।
यह युगप्रधान अभिनंदन, अवसर मन भा रहा।।
षष्टिपूर्ति का दुर्लभ, अवसर मन भा रहा।
शासनमाता की ममता, है अविरल बरस रही।
महाप्रज्ञ तुलसी का, मन भी हर्षा रहा।।
तुम सा शासन पति पाकर, यह गण गुलजार हुआ।
भिक्षु के पट की महिमा, हर दिल गा रहा।।
लय: प्रभु पार्श्वदेव चरणों में...