शासनश्री साध्वी जयप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
अर्हम्
साध्वी योगक्षेमप्रभा
अनशन है जयकारी।
शासनश्री जयप्रभाजी की हम जाएँ बलि-बहलहारी॥
विपुल वेदन तन में फिर यह कैसे हिम्मतधारी?
नेह देह का तजकर जोड़ी आत्मा से इकतारी।
समता देख अनूठी सतिवर! विस्मित है नरनारी---अनशन॥
चिन्मय से जब प्रीत जगे तब होता है संथारा।
मृणाय से जब मोह छूटे तब बदले चिंतनधारा।
भावों की श्रेणी आरोहण है सुकृत संचारी---अनशन॥
सुखपृच्छा सह करें वंदना, अविनय आप खमाए।
पद निर्वाण प्राप्त हो जल्दी यही भावना भाए।
मिला भाग्य से भैक्षव शासन, जिन शासन सुखकारी---अनशन॥
क्षणभंगुर इस तन से आखिर, पूरा सार निकाला।
साथ मिला सुंदर सतियों का, मृत्यु को ललकारा।
विजय वरो इस कर्म समर में मंजिल पा मनहारी----अनशन॥
लय : संयममय जीवन हो---
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