मंगल गाएँ दशों दिशाएँ
नभ धरती में गूंज रही है, महाश्रमण की यशगाथाएं ।
षष्टिपूर्ति की शुभबेला, मंगल गाएं दशो दिशाएं ।।
भाग्य और पुरूषार्थ चक्र दो संवाहक हैं जीवन रथ के।
कदम-कदम पर मिले सफलता, राह दिखाते पत्थर पथ के।
अतिशायी व्यक्तित्व तुम्हारा, शत-शत श्रद्धा शीश झुकाएं।।
अप्रमत्त साधक तुम भगवान! पल-पल का रस सींच रहे हो।
संकल्पों से संयम को भी जगरूक बन सींच रहे हो।
अभिनंदन करने गुरुवर का, भक्त ह्नदय ये हैं उमगाएं।।
गुरुचरणों में सौंप स्वयं को बने सदा निर्भार।
अशीर्वाद से पाए जिनके सुंदर-सुंदरतम उपहार।
मंगल अवसर जन्मधरा यह वर्धापन के गीत सुनाएं।