धर्मदूत तुम बनकर आए
मानवता के दिव्य रूप हो, धर्मदूत तुम बनकर आए,
मूर्च्छित मानव संस्कृति के हित, संजीवन लेकर तुम आए।।
पौरूष के हो परम पुजारी, कदम-कदम पर मिली प्रतिष्ठा
समाधान देते जन-जन को, मानव की तुम में है निष्ठा
जगत पढ़ेगा प्रभो! तुम्हारी, लिखी प्रेम की पुण्य ऋचाएं।।
मूर्च्छित मानव संस्कृति ------ तुम आए।
लम्बी-लम्बी पदयात्रा कर, जन सम्पर्क बढ़ाया तुमनें
वत्सलता की बरसा कर, मीत स्नेह का गाया तुमनें
देख तुम्हारी दिव्य परख को, बार-बार बलिहारी जाए।।
मूर्च्छित मानव ----तुम आए।।
संघ संपदा की श्री वृद्धि, चिंतन रहता दिन-रातों में
संयम पथ की खरी कमाई, बढ़ी रहती थी खातों में
संयमपथ के तुम उद्गाता, श्रेष्ठ प्रेरणा पाते जाए
मूर्च्छित मानव ----- तुम आए।।
शिंव सुंदरं जीवन तेरा, आलोकित जैसा ध्रुवतारा
संकल्पों की ज्योत जला हम करते हैं अभिषेक तुम्हारा
सांस समर्पित है चरणों में, आत्मज्योति को हम पा जाएं।
मूर्च्छित मानव----तुम लेकर आए।।