शासनश्री साध्वी जयप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
अर्हम्
साध्वी वसंतप्रभा, साध्वी संकल्पश्री
साध्वी कल्पमाला, साध्वी रोहितयशा
मंगल अवसर आया, हद हिम्मत कर दिखलाया।
शासनश्री जयप्रभाजी, अद्भुत सौरभ फैलाया।
अनशन कर दिखलाया है, ऊँचा लक्ष्य बनाया है॥
तुलसी गुरु के चरणों में, दीक्षा व्रत स्वीकारा।
साध्वी विजयश्री ने, संस्कारों से खूब संवारा।
अंतर शक्ति जगाएँ, जीवन धन्य बनाएँ॥
सेवा, समता और समर्पण, देखी गण-गणपति इकतारी।
सहनशीलता देख तुम्हारी, जाते सब बलिहारी।
क्या गुण गौरव हम गाएँ, भावों का थाल सजाएँ॥
गुरुवर की ऊर्जा शक्ति से, लक्षित मंजिल पाओ।
दृढ़ संकल्प, मनोबल से, आत्मोत्थान कर पाओ।
यही हम भावना भाएँ, उज्ज्वल जीवन बन जाएँ॥
साध्वी रतनश्री जी ने, साहस दीप जलाया।
तीसरा मनोरथ पूर्ण करो तुम, अनुपम आशीर्वर पाया।
साध्वी वसंतप्रभा गाएँ, अंतर भाव सुनाएँ॥
लय : सूरज कब दूर----