लोभ है पाप का बाप: आचार्यश्री महाश्रमण
सरदारशहर, 28 अप्रैल, 2022
साधना के शलाका पुरुष आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि जैन वाङ्मय में कषाय शब्द आता है। कषाय वह तत्त्व है जिसके द्वारा कर्म-मल का ग्रहण होता है। क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार कषाय हैं।
जैन दर्शन में आठ कर्म हैं, चार घाति कर्म हैं, चार अघाति कर्म हैं। वेदनीय, नाम, गौत्र और आयुष्य ये चार अघाति कर्म हैं। ये चार कर्म भले हैं, आत्मा का विशेष नुकसान करने वाले नहीं हैं। जैसे जानवरों में खरगोश सरल होता है, वैसे ये भी भले हैं, इनसे ज्यादा खतरा नहीं है। खतरा होता भी है, तो शरीर को है, आत्मा को नहीं। अघाति कर्म यदि पुण्य रूप में हैं, तो खतरा ही नहीं है। अनुकूलता रहेगी।
ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अंतरायµये चार घाति कर्म हैं। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अंतराय कर्म को पैदा करने वाला मोहनीय कर्म है। मोहनीय कर्म नहीं है, तो शेष तीन का बंध नहीं हो सकता। इन चारों कर्मों में मुख्य मोहनीय कर्म है।
साधना के क्षेत्र में निशाना साधना हो तो मुख्यतया मोहनीय कर्म को निशाना बनाना चाहिए। मोहनीय कर्म का प्रभाव कैसे कम पड़े, उस पर मैं ध्यान देकर प्रयास करूँ। अध्यात्म के क्षेत्र में मोहनीय कर्म साधना में बाधक है। इसका नाश करने का हमें विशेष प्रयास करना चाहिए। मोहनीय कर्म की अट्ठाइस प्रकृतियाँ हैं।
मोहनीय कर्म का बहुत बड़ा परिवार है, 28 सदस्य हैं। इन 28 में संज्वलन का जो लोभ है, वो दसवें गुणस्थान तक रहता है। ग्यारहवें गुणस्थान में मोहनीय कर्म उपशांत रूप में हो। ग्यारहवाँ गुणस्थान वीतराग का है, पर उसकी स्थिति बहुत कम है। बारहवें गुणस्थान वाला वीतराग स्थायी वीतराग का है। परमानेंट हो जाए उसका महत्त्व है।
लोभ कषाय अंत में जाने वाला कषाय है। लोभ ऐसा तत्त्व है, जिसके कारण से आदमी झूठ भी बोल देता है और हिंसा में भी जा सकता है। अशुभ योग छठे गुणस्थान तक हो सकता है। सातवें गुणस्थान से अशुभ योग नहीं हो सकता। छद्मस्थता का प्रकोप छठे गुणस्थान तक ही है। सातवें से बारहवें तक छद्मस्थता तो है, पर उसमें निस्तेजता है।
लोभ है, वो साधु को भी उत्पथ की ओर ले जा सकता है और कषाय भी ले जा सकते हैं, पर लोभ ज्यादा बलवान कषाय है। पाप का बाप लोभ है। तात्त्विक दृष्टि से देखें तो लोभ एक जटिल तत्त्व है। तो फिर करें क्या? उस पर कैसे कंट्रोल करें?
गृहस्थ आप लोग है, परिग्रह की सीमा, इच्छाओं का अल्पीकरण करने का प्रयास रखें। उम्र आ जाए तो विशेष ध्यान देना चाहिए कि परिग्रह मेरा कैसे कम हो? व्यवसाय-व्यवहार में भी प्रामाणिकता रहे। पाप के बंध से बचने का प्रयास करें। इससे लोभ की कषाय पर कंट्रोल करने का प्रयास हो सकता है। अनैतिकता-झूठ से बचें।
आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने एक बार दो शब्द फरमाए थेµअर्थ और अर्थाभास। न्याय से उपार्जित धन अर्थ होता है। अन्याय-अनीति से जो पैसा अर्जित किया जाए वो अर्थाभास है। गृहस्थ ध्यान दे कि मेरे घर में अर्थाभास न रहे। थोड़ा संयम रखे। ईमानदारी-प्रामाणिकता, सच्चाई हमारे पास है, वो शुद्धता है, वो हमारे साथ जा सकेगी।
थोड़ा संकल्प हो तो काफी बचाव या पूरा बचाव हो सकता है। गृहस्थ जीवन में अणुव्रत को रखें। लोभ कषाय को कंट्रोल में रखें। ये उसके उपाय हैं।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ प्राणवान धर्मसंघ है। प्राणवत्ता का आधार है, एक नेतृत्व। एक नेतृत्व की छत्रछाया में धर्मसंघ शांति का अनुभव कर सकता है। यहाँ गुरु आज्ञा सर्वोपरि हो जो आचार्य की दृष्टि व इंगित की आराधना करता है, वह शिष्य सफल हो जाता है। सरदारशहरवासियों का सौभाग्य रहा है कि इन्हें आचार्यों का अनुग्रह प्राप्त हो जाता है।
साध्वीवर्याजी ने कहा कि हमें अपने जीवन में गुरु की जरूरत है, जो सम्यक् रूप से शिष्य का कल्याण करते हों। सम्यक् जीवन के लिए आध्यात्मिक गुरु की आवश्यकता होती है, जो हमें प्राप्त हैं। अनंत जन्मों की पुण्याई से ऐसे गुरु प्राप्त होते हैं। आचार्यप्रवर ने बारह वर्षों के शासन में कितने-कितने अवदान धर्मसंघ को दिए हैं।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में साध्वी सुमतिप्रभाजी ने अपने भाव अभिव्यक्त किए। सरदारशहर की साध्वियों एवं समणियों के द्वारा समुह गीत की प्रस्तुति हुई। समणी सौम्यप्रज्ञा जी एवं समणी मंजुप्रज्ञाजी ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
ज्ञानशाला ज्ञानार्थी एवं ज्ञानशाला प्रशिक्षिकाओं ने गीत की प्रस्तुति दी। प्रवास व्यवस्था समिति उपाध्यक्ष अशोक नाहटा, महामंत्री सूरज बरड़िया ने अपनी भावना श्रीचरणों में प्रस्तुत की।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि दिनचर्या आदमी की बदल जाती है, तो उसकी जीवनचर्या भी बदल सकती है।
प्रवचन से पूर्व पूज्यप्रवर तेरापंथ महिला मंडल द्वारा नवनिर्मित भवन में पधारे। भवन का अवलोकन कर मंगलपाठ सुनवाया। सुमतिवंद गोठी ने पूज्यप्रवर से निवेदन किया कि सरदारशहर को सेवा केंद्र के रूप में स्थापित कर अनुग्रह करवाए। महिला मंडल उस सेवा केंद्र की जगह व्यवस्था जागरूकता से कर सकती है।