सत्ता का घमंड नहीं, उससे सेवा करें: आचार्यश्री महाश्रमण
सरदारशहर, 5 मई, 2022
ज्ञानदीप आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना देते हुए फरमाया कि हमारे भीतर अनेक वृत्तियाँ हैं। चार कषाय की वृत्तियाँ गुस्सा, अहंकार, माया, लोभ भी है। चार संज्ञाएँ भी आगम वाङ्मय में बताई गई हैं। आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा और परिग्रह संज्ञा। वृत्तियाँ कई अच्छी हैं, तो कई बुरी भी हैं। अच्छी वृत्तियाँ हमारे गुण हैं, जैसे क्षमा, ऋजुता, मृदुता, संतोष। एक वृत्ति जिसे दुर्वृति कहा जाता है, वह अहंकार-घमंड। आदमी में बड़प्पन की भावना, दूसरों को अपने अधीन रखने की भावना, दूसरों का दिल दुखाना दुर्भावना हो सकती है। आदमी के ज्ञान का भी घमंड हो जाता है। ज्ञान है, तो प्रदर्शन करने का भाव है। ज्ञान होने पर भी मौन रखना। शक्ति होने पर भी क्षमा रखना। गृहस्थों को धन का घमंड नहीं करना चाहिए। पैसे के प्रति आसक्ति न हो। मोह का भाव नहीं होना चाहिए। पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। रूप का भी घमंड न हो। ये सब पुण्य के योग से मिलते हैं। ताकत, सत्ता, अधिकार का घमंड नहीं, उससे सेवा करें।
किसी के साथ शत्रुता का भाव न हो। शत्रु को भी मित्र बनाने का प्रयास हो। मेरा कोई शत्रु न रहे। शत्रु के प्रति भी दुर्भावना न हो। शत्रुता का जवाब विनय भाव से दें। किसी प्रकार का घमंड न हो। साधु और गृहस्थ को भी घमंड से बचना चाहिए। अहंकार कर्म बंधन का कारण है। ज्ञानदाता गुरु का नाम बताने में भी संकोच, अहंकार न हो। गुरु के प्रति सम्मान का भाव हो। हमारे में विनय धैर्य का भाव हो। उतावलापन ज्ञान का घमंड से गलती हो सकती है। विनय से संपत्ति मिलती है, उद्दंडता से आदमी को विपत्ति मिल सकती है। हमें अहंकार नहीं करना चाहिए। हमें जीवन में घमंड से बचने का प्रयास रखना चाहिए। यह हमारे लिए अच्छा हो सकता है।
साध्वीवर्याजी ने कहा कि अमृत पान देवता से अच्छा मनुष्य कर सकता है। वर्तमान में जीने का प्रयास करता है, आत्मा के आसपास रहता है, वह व्यक्ति अमृतपान कर सकता है। पूज्यप्रवर की अभिवंदना में साध्वी मीमांसाप्रभाजी, छत्र बुच्चा, सुमन पींचा, विमल सामसुखा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।