शासनश्री साध्वी जयप्रभा जी के प्रति आध्यात्मिक उद्गार
अर्हम्
‘शासनश्री’ साध्वी भाग्यवती व सहवर्तिनी साध्वियाँ
‘धन्य’ जयप्रभा साध्वीश्री बाजी जीती पाछली।
काढ्यो नरभव रो थे सार, कलगी आशा बेलड़ी॥
गिरिगढ़वासी चोरड़िया कुल में आभा प्रखरी।
भगिनी चटुष्ट्य संघ चमन में सुषमा सांतरी।
तुलसी संयम रत्न दिलाकर, भाग्य रेखा बदली।
सग भतिजी रे भी मन में संयम ज्योति प्रजली॥
धन्य जयप्रभा शासनश्री----
सौम्य शांत समरस जीवन स्यूं पाई प्रेरणा।
सहज-सरल व्यक्तित्व, जागरूक क्षण-क्षण चेतना।
अवसर आयां हिम्मत राखै सचमुच कोई आत्मबली॥
धन्य जयप्रभा----
लघुवय में संयमश्री रो वरदान मिल्यो अवदात।
चिरकालिन पर्याय विशुद्धि रा खिलग्या जलजात।
‘अमल धवल चारित्र चदरिया’ राखी हरदम उजली॥
धन्य जयप्रभा----
काल अनन्तो बीत्यो, रही अब नदी गंग अवशेष।
जल्दी मुगती वरज्यो, जीतो परिणामां (शुभ भावां) रो रेस।
इकभवतारी बणकर करल्यो नेडी मोक्ष री कड़ी॥
धन्य जयप्रभा----
महातपस्वी महाश्रमण री वर अनुशासना।
सदा शिवंकर शुमकर पूरे सब री कामना।
गण री सेवा करस्यूं बांधो मन में पक्की गांठडी।
उपर जाकर सेवा करस्यूं राखो श्रद्धा आखरी॥
धन्य जयप्रभा शासनश्री जीती बाजी पाछली।
लय : धन्य गजसुकमाल मुनि----